अंजान तो हम थे पहले भी
जब जान-पहचान होने लगी थी
बातों-बातों से जब
मुलाकातें होने लगी थी।
ईरादा तो दोस्ती का था अपना
ना जाने प्यार ने कब किया बसेरा
हसना-गाना, रुठना और मनाना
खेल वही सदियों पुराना।
मोहब्बत का इकरार हुआ
इकरार फिर टकरार हुआ
टूटा दिल इस कद्द की
हर फूल अब मानो पत्थर हुआ
टूटा प्यार, और टूटी दोस्ती भी
अंजान से जान का सफर
फिर अंजान पर आ कर खतम हुँआ।
-sheetalhathile
©Sheetal Hathile
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