काश मैं तुम्हारा दफ़्तर होता, जिससे मिलने तुम हर र

"काश मैं तुम्हारा दफ़्तर होता, जिससे मिलने तुम हर रोज चली आती, अनचाही ही सही मगर तुम्हारे लवों पर मुस्कान तो होती, जात-पात से परे हमारे रिश्ते की एक अलग पहचान तो होती... (Read Full In Caption)"

 काश मैं तुम्हारा दफ़्तर होता,
जिससे मिलने तुम हर रोज चली आती,
अनचाही ही सही मगर तुम्हारे लवों पर मुस्कान तो होती,
जात-पात से परे हमारे रिश्ते की एक अलग पहचान तो होती...

(Read Full In Caption)

काश मैं तुम्हारा दफ़्तर होता, जिससे मिलने तुम हर रोज चली आती, अनचाही ही सही मगर तुम्हारे लवों पर मुस्कान तो होती, जात-पात से परे हमारे रिश्ते की एक अलग पहचान तो होती... (Read Full In Caption)

काश मैं तुम्हारा दफ़्तर होता,
जिससे मिलने तुम हर रोज चली आती,
अनचाही ही सही मगर तुम्हारे लवों पर मुस्कान तो होती,
जात-पात से परे हमारे रिश्ते की एक अलग पहचान तो होती !!

तुम होती मुझसे खफ़ा, तो भी खफ़ा न रहती,
मैं रूलता भी ग़र तुमको, तो भी मुझे बेवफा न कहती,
हर रोज बीतता तुम्हारा दिन मेरी बाँहों में,

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