मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता | हिंदी कविता

"मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते  है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता ,  पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई ,  सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४      महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मनहरण घनाक्षरी :-
लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो ।
त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को ।
नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो ,
चलो सब मिलकर, करो मतदान को ।
ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं
पहचानते  है हम , छुपे शैतान को ।
मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे,
रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१
वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , 
पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से ।
मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे,
आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से ।
घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय,
देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से।
घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया ,
पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२
टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती ,
रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे ।
नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई ,
पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे ।
मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान ,
कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे ।
और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई,
जब तेरी याद आई ,  सुन लो बीमार थे ।।३
२८/०३/२०२४      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते  है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता ,  पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई ,  सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४      महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :-
लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो ।
त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को ।
नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो ,
चलो सब मिलकर, करो मतदान को ।
ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं
पहचानते  है हम , छुपे शैतान को ।
मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे,

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