"कब तक बैठ कर केवल सोचा जाएगा
कब तक ऐसे ही जिस्मों को नोंचा जाएगा
क्या पौरुष का सही अर्थ कभी खोज पाएंगे हम
और ग़र नहीं
तो क्या खुद की नस्ल को इस हैवानियत से रोक पाएंगे हम"
कब तक बैठ कर केवल सोचा जाएगा
कब तक ऐसे ही जिस्मों को नोंचा जाएगा
क्या पौरुष का सही अर्थ कभी खोज पाएंगे हम
और ग़र नहीं
तो क्या खुद की नस्ल को इस हैवानियत से रोक पाएंगे हम