पत्तों के गलने की ऋतु है, फसलों को मारे पाला शीत प | मराठी कविता

"पत्तों के गलने की ऋतु है, फसलों को मारे पाला शीत पवन आती ठिठुराती, कोहरे ने डेरा डाला, नहीं नया उल्लास न सरगम,ये कैसा है नववर्ष अंध-अनुकरण केवल यह,है मानस का अपकर्ष। सांध्यगीत"

 पत्तों के गलने की ऋतु है, फसलों को मारे पाला
शीत पवन आती ठिठुराती, कोहरे ने डेरा डाला,
नहीं नया उल्लास न सरगम,ये कैसा है नववर्ष
 अंध-अनुकरण केवल यह,है मानस का अपकर्ष।

सांध्यगीत

पत्तों के गलने की ऋतु है, फसलों को मारे पाला शीत पवन आती ठिठुराती, कोहरे ने डेरा डाला, नहीं नया उल्लास न सरगम,ये कैसा है नववर्ष अंध-अनुकरण केवल यह,है मानस का अपकर्ष। सांध्यगीत

#newyear#नववर्ष#

People who shared love close

More like this

Trending Topic