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 ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए,
भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए। 
न सुपिन्यु छो, न बैम छो कुई, स्या त बल कल्पना छे मेरी  
छा एक बिस्तरा मां थर्पयां द्वि लोकलाजे कैतें बींग नि ए।

यखुलि-यखुलि ज्यु मा हे कनि छिड़बिड़ाट छे मचणि,
जन सूखा डाँडौं मा आछारियों के टोलि ह्वोलि नचणि। 
प्रीत कि आग, जुवानि कु ताप इन चढ़्यूँ छो सरील मा 
कैं रमता औजि कि हुड़कि मंडाण सी पैलि ह्वोलि जन तचणि ।

कन निर्भगि तीस छें जगीं, जु पाणि पैण सि भी नि बुझै
हे ब्वै कन जरु ह्वे सची, लग्यूँ छो बड़ड़ाण पर बात इखि
जैका सुनपट्या बोल न सुणदा बणि, न बींगदा बणि, 
डौर बैठ गे गौं मा कि कुई मसाण त नि लगि ये पर कखि।

वीं कि खुद छें भारी सताणि पर गौला मा इक बडुलि नि ए।
खीसा मा चित्र नि छो कुई फेर भी आँख्यों मा तसवीर धुंधलि किलै नि ए। 
जु छा लोग राति–दिन अपणि माया तें जगणा, अर बाटु हिरणा, 
कुभग्यान ह्वोलु जु यूँ तें भट्यालु “हे घौर ऐजा, स्या आज भी नि ए”।

कु जाणि कबरि भेंट ह्वोलि, कु जाणि कब दर्शन ह्वोला, 
ह्वेगि रुमक, रविराज भी सै गिनि, चखुला घौर जबरी आला। 
बदन मा थकान ह्वे अर जिकुड़ि मा थतराट, 
आँखा गर्रा छा, अर मन मा छें ह्वोणि घबराट,
लमडे ग्यों हाथ-गौणा छोड़िक भ्वें मा, 
ह्वेगि छो यु दिन भी ब्यालि जन बरबाद,
कु बोल्दु जगदि आँख्यों मा सुपन्या बिंडि नि ए,
अर ब्याल राते जन ईं रात भी मैतें निंद नि ए।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

अनिंद ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए, भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए।  न सुपिन्यु छो

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White माँ को मत पाएं समझ, सुत हैं अब नादान । पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।। बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु । सुन उसके हर रूप में , छुपी एक है मातु ।। वह तन क्यूँ मैला करो , जो दे जीवन दान । मान उसे इंसान तू् , अपना अब भगवान ।। जिस तन को मैला किया , बनकर तू इंसान । जन्म वही तुमको दिया , समझ तुम्हें संतान ।। तन उसका मैला सही , मन उसका है पाक । जैसे वन में हो उगा , वृक्ष एक अब आक ।। ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता #mothers_day  White माँ को मत पाएं समझ, सुत हैं अब नादान ।
पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।।

बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।
सुन उसके हर रूप में , छुपी एक है मातु ।।

वह तन क्यूँ मैला करो , जो दे जीवन दान ।
मान उसे इंसान तू् , अपना अब भगवान ।।

जिस तन को मैला किया , बनकर तू इंसान ।
जन्म वही तुमको दिया , समझ तुम्हें संतान ।।

तन उसका मैला सही , मन उसका है पाक ।
जैसे वन में हो उगा , वृक्ष एक अब आक ।।

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#mothers_day माँ को मत पाये समझ, सुत हैं अब नादान । पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।। बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।

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 ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए,
भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए। 
न सुपिन्यु छो, न बैम छो कुई, स्या त बल कल्पना छे मेरी  
छा एक बिस्तरा मां थर्पयां द्वि लोकलाजे कैतें बींग नि ए।

यखुलि-यखुलि ज्यु मा हे कनि छिड़बिड़ाट छे मचणि,
जन सूखा डाँडौं मा आछारियों के टोलि ह्वोलि नचणि। 
प्रीत कि आग, जुवानि कु ताप इन चढ़्यूँ छो सरील मा 
कैं रमता औजि कि हुड़कि मंडाण सी पैलि ह्वोलि जन तचणि ।

कन निर्भगि तीस छें जगीं, जु पाणि पैण सि भी नि बुझै
हे ब्वै कन जरु ह्वे सची, लग्यूँ छो बड़ड़ाण पर बात इखि
जैका सुनपट्या बोल न सुणदा बणि, न बींगदा बणि, 
डौर बैठ गे गौं मा कि कुई मसाण त नि लगि ये पर कखि।

वीं कि खुद छें भारी सताणि पर गौला मा इक बडुलि नि ए।
खीसा मा चित्र नि छो कुई फेर भी आँख्यों मा तसवीर धुंधलि किलै नि ए। 
जु छा लोग राति–दिन अपणि माया तें जगणा, अर बाटु हिरणा, 
कुभग्यान ह्वोलु जु यूँ तें भट्यालु “हे घौर ऐजा, स्या आज भी नि ए”।

कु जाणि कबरि भेंट ह्वोलि, कु जाणि कब दर्शन ह्वोला, 
ह्वेगि रुमक, रविराज भी सै गिनि, चखुला घौर जबरी आला। 
बदन मा थकान ह्वे अर जिकुड़ि मा थतराट, 
आँखा गर्रा छा, अर मन मा छें ह्वोणि घबराट,
लमडे ग्यों हाथ-गौणा छोड़िक भ्वें मा, 
ह्वेगि छो यु दिन भी ब्यालि जन बरबाद,
कु बोल्दु जगदि आँख्यों मा सुपन्या बिंडि नि ए,
अर ब्याल राते जन ईं रात भी मैतें निंद नि ए।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

अनिंद ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए, भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए।  न सुपिन्यु छो

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White माँ को मत पाएं समझ, सुत हैं अब नादान । पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।। बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु । सुन उसके हर रूप में , छुपी एक है मातु ।। वह तन क्यूँ मैला करो , जो दे जीवन दान । मान उसे इंसान तू् , अपना अब भगवान ।। जिस तन को मैला किया , बनकर तू इंसान । जन्म वही तुमको दिया , समझ तुम्हें संतान ।। तन उसका मैला सही , मन उसका है पाक । जैसे वन में हो उगा , वृक्ष एक अब आक ।। ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता #mothers_day  White माँ को मत पाएं समझ, सुत हैं अब नादान ।
पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।।

बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।
सुन उसके हर रूप में , छुपी एक है मातु ।।

वह तन क्यूँ मैला करो , जो दे जीवन दान ।
मान उसे इंसान तू् , अपना अब भगवान ।।

जिस तन को मैला किया , बनकर तू इंसान ।
जन्म वही तुमको दिया , समझ तुम्हें संतान ।।

तन उसका मैला सही , मन उसका है पाक ।
जैसे वन में हो उगा , वृक्ष एक अब आक ।।

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#mothers_day माँ को मत पाये समझ, सुत हैं अब नादान । पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।। बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।

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