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#मोटिवेशनल #sad_shayari  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी को समझने के लिए आइए हम विष्णु पुराणों पर कुछ प्रकाश डालते हैं !! 🌠🌠 जय श्री राधे कृष्ण जी.
देवी लक्ष्मी:- 🚤 प्रत्येक देवी और देवता का हिंदू धर्म में अपना ही एक अलग महत्व है, जो प्राचीन शास्त्रों में परिलक्षित है। वहीं हिंदुओं के लिए देवी लक्ष्मी धन, भाग्य, शक्ति, विलासिता, सौंदर्य, उर्वरता और शुभता की देवी हैं। लक्ष्मी शब्द संस्कृत के शब्द लक्ष्या से लिया गया है, और वह धन और सभी भौतिक सुखों को प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं। लक्ष्मी को माँ दुर्गा की बेटी और विष्णु की पत्नी के रूप में जाना जाता है, जिनके साथ वह अपने प्रत्येक अवतार में अलग-अलग रूप धारण करती हैं। देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी को समझने के लिए आइए हम विष्णु पुराणों पर कुछ प्रकाश डालते हैं।

देवी लक्ष्मी का जन्म कथा:-🚤 देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी कुछ इस प्रकार है। दरअसल एक बार ऋषि दुर्वासा और भगवान इंद्र बैठकर बात कर रहे होते हैं। ऋषि दुर्वासा इंद्र को सम्मानित करने के लिए उन्हें पुष्पों की माला भेंट करते हैं। इंद्र उसे माला को अपने हाथी ऐरावत को पहना देते हैं लेकिन ऐरावत उस माला को पृथ्वी पर फेंक देता है। यह देखकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो जाते हैं, और देवराज को शाप देते हैं कि उनका राज्य बर्बाद हो जाएगा। ऋषि के श्राप की वजह से इंद्र की राजधानी अमरावती में लोग भूखे मरने लगते हैं, और वहां पेड़-पौधे भी उगना बंद हो जाते हैं। 
🚤 जब अमरावती में अकाल पड़ जाता है, तब राक्षस देवताओं पर आक्रमण कर देते हैं, और उन्हें हरा देते हैं। पराजित होने के बाद देवता मदद के लिए भगवान हरि के जाते हैं, जो उन्हें समुद्र मंथन का सुझाव देते हैं, ताकि उससे निकले अमृत से देवता वापस से अपनी शक्तियों को पा सकें। इस तरह समुद्र मंथन शुरू होता है, और उससे ही देवी लक्ष्मी प्रकट होती हैं। वहीं कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महा लक्ष्मी सप्तर्षियों में से एक भृगु महर्षि की बेटी थीं। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी के देवसखा, चिकलिता, आनंद, कर्दम, श्रीपदा, जटावेदा, अनुराग, संवत, विजया, वल्लभ, माडा, हर्ष, बाला, तेजा, दमका, सलिला, गुग्गुला, कुरुंतका नाम के 18 पुत्र हैं।
देवी लक्ष्मी का स्वरूप:-🚤 देवी लक्ष्मी के चार हाथ जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले चार लक्ष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं - धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष। इसके अलावा देवी लक्ष्मी की कलाकृतियों और मूर्तियों में, सिक्कों का झरना धन का प्रतिनिधित्व करता है और हाथियों के झुंड को शाही शक्ति का प्रतिनिधित्व माना जाता है। साथ ही लाल रंग की साड़ी जो वह पहनती है वह निरंतर गतिविधि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए है।
🚤 पौराणिक मान्यता है कि जब जब धरती पर भगवान विष्णु का अवतार हुआ तब तब मां लक्ष्मी ने उनकी सेवा करने के लिए धरती पर अवतार लिया। त्रेतायुग में सीता के रूप में और द्वापर युग में रुक्मिणी के रूप में अवतरित हुई थीं। 
🚤 अष्टलक्ष्मी लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं, जो धन के आठ स्रोतों में रहते हैं और इस प्रकार महालक्ष्मी की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दीपों के पर्व दीपावली पर हिंदू सबसे अधिक लक्ष्मी की पूजा करते हैं। कोलकाता में देवी काली की पूजा दिवाली के दौरान महालक्ष्मी के रूप में की जाती है।
लक्ष्मी अवतार और स्वरूप:-🚤 आदि लक्ष्मी - माँ लक्ष्मी का पहला स्वरूप हैं, 
🚤 धन लक्ष्मी - वह जो धन की वर्षा करती हैं:-
🚤 धान्य लक्ष्मी - वह जो अन्न / अनाज की प्रचुरता देती हैं.
🚤 गज लक्ष्मी - शक्ति और साहस देने वाली हैं:- 
🚤 संतान लक्ष्मी - वह संतान के साथ आशीर्वाद देती हैं.
🚤 वीरा लक्ष्मी - जो वीरता और साहस देती हैं.
🚤 विजया लक्ष्मी - सभी प्रकार के शत्रुओं पर विजय देती हैं,.
🚤 ऐश्वर्या लक्ष्मी - व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं देती हैं.
🚤 महा लक्ष्मी के 8 रूपों को सामूहिक रूप से अष्टलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है। इन 8 रूपों के अलावा, देवी लक्ष्मी के भी स्वरुप में पूजा की जाती है।
🚤 विद्या लक्ष्मी - जो बुद्धि और ज्ञान देने वाली हैं.
🚤 सौभाग्य लक्ष्मी - वह जो सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं.
🚤 राज्य लक्ष्मी - राज्य और संपत्ति देने वाली हैं. {Bolo Ji Radhey Radhey}
🚤 वर लक्ष्मी - जो वरदान देती हैं.
🚤 धैर्य लक्ष्मी - वह जो धैर्य प्रदान करती हैं.
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय:-🚤 शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने का सबसे अच्छा दिन है। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के लिए कमल के फूल, चंदन, सुपारी और मेवे, फल और गुड़, चावल और नारियल से बनी विभिन्न मीठी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए प्रत्येक शुक्रवार को ॐ महालक्ष्मी च विद्हे विष्णुपत्नींच धीमही । तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात ॥ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।

©N S Yadav GoldMine

#sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी को समझने के लिए आइए हम विष्णु पुराणों पर कुछ प्रकाश डालते हैं !! 🌠🌠 जय श्

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#वीडियो #अजमेर

#अजमेर में एक रेस्टोरेंट में लगी आग

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चाँद तारों में फूल बहारों में

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White उनके लिए मैं बुरा हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं नही आता हुनर मुझे जीहुजूरी का क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं कड़वा बोल देता हूं झूठ से हाथ जोड़ लेता हूं सही को दिल मैं तो गलत को बाहर फेंक देता हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं अपनी बात पर टिकी रहता हूं गोल मोल बातो से दूर रहता हूं सच को सच ही कह देता हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं थोड़ी सख्त हूं पर दिल की नेक हूं हर मैल दिल का साफ रखता हूं मैं लहजे में नरमी की बात रखता हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं ©पूर्वार्थ

#में  White उनके लिए मैं बुरा हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं
नही आता हुनर मुझे
जीहुजूरी का 
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

कड़वा बोल देता हूं
झूठ से हाथ जोड़ लेता हूं
सही को दिल मैं 
तो गलत को बाहर फेंक देता हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

अपनी बात पर टिकी रहता हूं 
गोल मोल बातो से दूर रहता हूं
सच को सच ही कह देता हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

थोड़ी सख्त हूं पर दिल की नेक हूं
हर मैल दिल का साफ रखता हूं
मैं लहजे में नरमी की बात रखता हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

©पूर्वार्थ

#में

11 Love

#विचार #mothers_day  White गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं- ध्यानहेयास्तद् वृत्तयः॥
 (पातञ्जलयोगदर्शन २: ११) 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
तो सूक्ष्ममय जो वृत्तियाँ हैं पहले सेती वो ध्यान करके हैं, ध्यान करके त्याग, माने ध्यान के प्रभाव से सूक्ष्म वृत्तियां भी खत्म हो जाती हैं एक प्रकार से, तो ध्यान की सभी कोई महिमा गाते हैं। सभी शास्त्र अर गीता का तो विशेष लक्ष्य है, गीता का जोर तो भगवान् के नाम के जप के ऊपर इतना नहीं है, कि जितना भगवान् के स्वरूप के चिंतन के ऊपर है, स्मरणके ऊपर है, स्मरण की जो आगे की अवस्था हैं वो ही चिंतन है और चिंतन की और अवस्था जब बढ़ जाती है, तो चिंतन ही ध्यान बन जाता है। भगवान् के स्वरूप की जो यादगिरी है उसका नाम स्मरण है, अर उसका जो एक प्रकारसे मनसेती स्वरूप पकड़े रहता है, उसकी आकृति भूलते नहीं हैं, वह होता है चिंतन, अर वह ऐसा हो जाता है कि अपने आपका बाहरका उसका ज्ञान ही नहीं रवे एकतानता ध्यानं, एक तार समझो कि उस तरह का ध्यान निरंतर बण्या रवे, वह है सो ध्यान का स्वरूप है, तो परमात्मा का जो ध्यान है वह तो बहुत ही उत्तम है। तो परमात्माकी प्राप्ति तो ध्यानसे शास्त्रों में बतलायी है। किंतु अपने को परमात्मा का ध्यान इसलिये करना है, कि ध्यान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। जितने जो साधन हैं वह साधन के लिये हैं, और ध्यान है जो परमात्मा के लिये है किंतु हम एक प्रकार से ध्यान तो करें, और परमात्मा को नहीं बुलावें तो परमात्मा समझो कि अपने आप ही वहाँ आते हैं। सुतीक्ष्ण जो है भगवान् से मिलने के लिये जा रहा है, तो उसका ध्यान अपने आप ही हो गया, ऐसा ध्यान लग गया कि फिर भगवान् आकर उसका ध्यान तोड़ना चावे तो भी नहीं टूटता है तो भगवान् कितने खुश हो गये उसके ध्यान को देखकर, उसके ध्यान को देख करके भगवान् है सो मुग्ध हो गये। बोल्या यदि ध्यान न हो तो, ध्यान न हो तो भगवान् के केवल नाम का जप ही करना चाहिये, भगवान् के नामके जप से, भगवान् के भजन सेती ही समझो कि परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि भगवान् के नाम का जप करने से भगवान् में प्रेम होता है, अर भगवान् के मायँ प्रेम होने से समझो कि भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। इसलिये नाम के जप से भी परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है, नाम के जप से सारे पापों का नाश हो जाता है, नाम के जप से परमात्माके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, नाम के जपसे भगवान् उसके वश में हो जाते हैं, नाम के जपसे उसकी आत्मा का उद्धार हो जाता है। तो सारी बात नाम के जप से हो जाती है, तो इसलिये समझो कि यदि ध्यान न लगे, तो भगवान् के नाम का निरंतर जप ही करना चाहिये।
  सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखे। सुमरिअ नाम रूप बिनु देखे। होत हृदयँ सनेह विसेषें। होत हृदयँ सनेह विसेषें । भगवान् के नाम का सुमरन करना चाहिये, ध्यान के बिना भी तो भगवान् के वहां विशेष प्रेम हो जाता है, प्रेम होने से भगवान् मिल जाते हैं। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ हरि सब जगहमें सम भावसे विराजमान हैं और वे प्रेम से प्रकट होते हैं, शिवजी कहते हैं इस बात को मैं जानता हूँ।

©N S Yadav GoldMine

#mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क

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अगर पागल मैं नशे पर उतर आया ना तो पहले पायदान पर मोहब्बत ही होगी ©DANVEER SINGH DUNIYA

#लव  अगर पागल मैं नशे पर उतर आया ना तो पहले पायदान पर मोहब्बत ही होगी

©DANVEER SINGH DUNIYA

सच में ..

13 Love

#मोटिवेशनल #sad_shayari  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी को समझने के लिए आइए हम विष्णु पुराणों पर कुछ प्रकाश डालते हैं !! 🌠🌠 जय श्री राधे कृष्ण जी.
देवी लक्ष्मी:- 🚤 प्रत्येक देवी और देवता का हिंदू धर्म में अपना ही एक अलग महत्व है, जो प्राचीन शास्त्रों में परिलक्षित है। वहीं हिंदुओं के लिए देवी लक्ष्मी धन, भाग्य, शक्ति, विलासिता, सौंदर्य, उर्वरता और शुभता की देवी हैं। लक्ष्मी शब्द संस्कृत के शब्द लक्ष्या से लिया गया है, और वह धन और सभी भौतिक सुखों को प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं। लक्ष्मी को माँ दुर्गा की बेटी और विष्णु की पत्नी के रूप में जाना जाता है, जिनके साथ वह अपने प्रत्येक अवतार में अलग-अलग रूप धारण करती हैं। देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी को समझने के लिए आइए हम विष्णु पुराणों पर कुछ प्रकाश डालते हैं।

देवी लक्ष्मी का जन्म कथा:-🚤 देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी कुछ इस प्रकार है। दरअसल एक बार ऋषि दुर्वासा और भगवान इंद्र बैठकर बात कर रहे होते हैं। ऋषि दुर्वासा इंद्र को सम्मानित करने के लिए उन्हें पुष्पों की माला भेंट करते हैं। इंद्र उसे माला को अपने हाथी ऐरावत को पहना देते हैं लेकिन ऐरावत उस माला को पृथ्वी पर फेंक देता है। यह देखकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो जाते हैं, और देवराज को शाप देते हैं कि उनका राज्य बर्बाद हो जाएगा। ऋषि के श्राप की वजह से इंद्र की राजधानी अमरावती में लोग भूखे मरने लगते हैं, और वहां पेड़-पौधे भी उगना बंद हो जाते हैं। 
🚤 जब अमरावती में अकाल पड़ जाता है, तब राक्षस देवताओं पर आक्रमण कर देते हैं, और उन्हें हरा देते हैं। पराजित होने के बाद देवता मदद के लिए भगवान हरि के जाते हैं, जो उन्हें समुद्र मंथन का सुझाव देते हैं, ताकि उससे निकले अमृत से देवता वापस से अपनी शक्तियों को पा सकें। इस तरह समुद्र मंथन शुरू होता है, और उससे ही देवी लक्ष्मी प्रकट होती हैं। वहीं कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महा लक्ष्मी सप्तर्षियों में से एक भृगु महर्षि की बेटी थीं। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी के देवसखा, चिकलिता, आनंद, कर्दम, श्रीपदा, जटावेदा, अनुराग, संवत, विजया, वल्लभ, माडा, हर्ष, बाला, तेजा, दमका, सलिला, गुग्गुला, कुरुंतका नाम के 18 पुत्र हैं।
देवी लक्ष्मी का स्वरूप:-🚤 देवी लक्ष्मी के चार हाथ जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले चार लक्ष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं - धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष। इसके अलावा देवी लक्ष्मी की कलाकृतियों और मूर्तियों में, सिक्कों का झरना धन का प्रतिनिधित्व करता है और हाथियों के झुंड को शाही शक्ति का प्रतिनिधित्व माना जाता है। साथ ही लाल रंग की साड़ी जो वह पहनती है वह निरंतर गतिविधि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए है।
🚤 पौराणिक मान्यता है कि जब जब धरती पर भगवान विष्णु का अवतार हुआ तब तब मां लक्ष्मी ने उनकी सेवा करने के लिए धरती पर अवतार लिया। त्रेतायुग में सीता के रूप में और द्वापर युग में रुक्मिणी के रूप में अवतरित हुई थीं। 
🚤 अष्टलक्ष्मी लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं, जो धन के आठ स्रोतों में रहते हैं और इस प्रकार महालक्ष्मी की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दीपों के पर्व दीपावली पर हिंदू सबसे अधिक लक्ष्मी की पूजा करते हैं। कोलकाता में देवी काली की पूजा दिवाली के दौरान महालक्ष्मी के रूप में की जाती है।
लक्ष्मी अवतार और स्वरूप:-🚤 आदि लक्ष्मी - माँ लक्ष्मी का पहला स्वरूप हैं, 
🚤 धन लक्ष्मी - वह जो धन की वर्षा करती हैं:-
🚤 धान्य लक्ष्मी - वह जो अन्न / अनाज की प्रचुरता देती हैं.
🚤 गज लक्ष्मी - शक्ति और साहस देने वाली हैं:- 
🚤 संतान लक्ष्मी - वह संतान के साथ आशीर्वाद देती हैं.
🚤 वीरा लक्ष्मी - जो वीरता और साहस देती हैं.
🚤 विजया लक्ष्मी - सभी प्रकार के शत्रुओं पर विजय देती हैं,.
🚤 ऐश्वर्या लक्ष्मी - व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं देती हैं.
🚤 महा लक्ष्मी के 8 रूपों को सामूहिक रूप से अष्टलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है। इन 8 रूपों के अलावा, देवी लक्ष्मी के भी स्वरुप में पूजा की जाती है।
🚤 विद्या लक्ष्मी - जो बुद्धि और ज्ञान देने वाली हैं.
🚤 सौभाग्य लक्ष्मी - वह जो सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं.
🚤 राज्य लक्ष्मी - राज्य और संपत्ति देने वाली हैं. {Bolo Ji Radhey Radhey}
🚤 वर लक्ष्मी - जो वरदान देती हैं.
🚤 धैर्य लक्ष्मी - वह जो धैर्य प्रदान करती हैं.
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय:-🚤 शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने का सबसे अच्छा दिन है। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के लिए कमल के फूल, चंदन, सुपारी और मेवे, फल और गुड़, चावल और नारियल से बनी विभिन्न मीठी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए प्रत्येक शुक्रवार को ॐ महालक्ष्मी च विद्हे विष्णुपत्नींच धीमही । तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात ॥ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।

©N S Yadav GoldMine

#sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} देवी लक्ष्मी के जन्म की कहानी को समझने के लिए आइए हम विष्णु पुराणों पर कुछ प्रकाश डालते हैं !! 🌠🌠 जय श्

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#अजमेर में एक रेस्टोरेंट में लगी आग

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White उनके लिए मैं बुरा हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं नही आता हुनर मुझे जीहुजूरी का क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं कड़वा बोल देता हूं झूठ से हाथ जोड़ लेता हूं सही को दिल मैं तो गलत को बाहर फेंक देता हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं अपनी बात पर टिकी रहता हूं गोल मोल बातो से दूर रहता हूं सच को सच ही कह देता हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं थोड़ी सख्त हूं पर दिल की नेक हूं हर मैल दिल का साफ रखता हूं मैं लहजे में नरमी की बात रखता हूं क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं ©पूर्वार्थ

#में  White उनके लिए मैं बुरा हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं
नही आता हुनर मुझे
जीहुजूरी का 
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

कड़वा बोल देता हूं
झूठ से हाथ जोड़ लेता हूं
सही को दिल मैं 
तो गलत को बाहर फेंक देता हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

अपनी बात पर टिकी रहता हूं 
गोल मोल बातो से दूर रहता हूं
सच को सच ही कह देता हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

थोड़ी सख्त हूं पर दिल की नेक हूं
हर मैल दिल का साफ रखता हूं
मैं लहजे में नरमी की बात रखता हूं
क्योंकि मैं उनके जैसा नही हूं

©पूर्वार्थ

#में

11 Love

#विचार #mothers_day  White गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं- ध्यानहेयास्तद् वृत्तयः॥
 (पातञ्जलयोगदर्शन २: ११) 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
तो सूक्ष्ममय जो वृत्तियाँ हैं पहले सेती वो ध्यान करके हैं, ध्यान करके त्याग, माने ध्यान के प्रभाव से सूक्ष्म वृत्तियां भी खत्म हो जाती हैं एक प्रकार से, तो ध्यान की सभी कोई महिमा गाते हैं। सभी शास्त्र अर गीता का तो विशेष लक्ष्य है, गीता का जोर तो भगवान् के नाम के जप के ऊपर इतना नहीं है, कि जितना भगवान् के स्वरूप के चिंतन के ऊपर है, स्मरणके ऊपर है, स्मरण की जो आगे की अवस्था हैं वो ही चिंतन है और चिंतन की और अवस्था जब बढ़ जाती है, तो चिंतन ही ध्यान बन जाता है। भगवान् के स्वरूप की जो यादगिरी है उसका नाम स्मरण है, अर उसका जो एक प्रकारसे मनसेती स्वरूप पकड़े रहता है, उसकी आकृति भूलते नहीं हैं, वह होता है चिंतन, अर वह ऐसा हो जाता है कि अपने आपका बाहरका उसका ज्ञान ही नहीं रवे एकतानता ध्यानं, एक तार समझो कि उस तरह का ध्यान निरंतर बण्या रवे, वह है सो ध्यान का स्वरूप है, तो परमात्मा का जो ध्यान है वह तो बहुत ही उत्तम है। तो परमात्माकी प्राप्ति तो ध्यानसे शास्त्रों में बतलायी है। किंतु अपने को परमात्मा का ध्यान इसलिये करना है, कि ध्यान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। जितने जो साधन हैं वह साधन के लिये हैं, और ध्यान है जो परमात्मा के लिये है किंतु हम एक प्रकार से ध्यान तो करें, और परमात्मा को नहीं बुलावें तो परमात्मा समझो कि अपने आप ही वहाँ आते हैं। सुतीक्ष्ण जो है भगवान् से मिलने के लिये जा रहा है, तो उसका ध्यान अपने आप ही हो गया, ऐसा ध्यान लग गया कि फिर भगवान् आकर उसका ध्यान तोड़ना चावे तो भी नहीं टूटता है तो भगवान् कितने खुश हो गये उसके ध्यान को देखकर, उसके ध्यान को देख करके भगवान् है सो मुग्ध हो गये। बोल्या यदि ध्यान न हो तो, ध्यान न हो तो भगवान् के केवल नाम का जप ही करना चाहिये, भगवान् के नामके जप से, भगवान् के भजन सेती ही समझो कि परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि भगवान् के नाम का जप करने से भगवान् में प्रेम होता है, अर भगवान् के मायँ प्रेम होने से समझो कि भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। इसलिये नाम के जप से भी परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है, नाम के जप से सारे पापों का नाश हो जाता है, नाम के जप से परमात्माके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, नाम के जपसे भगवान् उसके वश में हो जाते हैं, नाम के जपसे उसकी आत्मा का उद्धार हो जाता है। तो सारी बात नाम के जप से हो जाती है, तो इसलिये समझो कि यदि ध्यान न लगे, तो भगवान् के नाम का निरंतर जप ही करना चाहिये।
  सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखे। सुमरिअ नाम रूप बिनु देखे। होत हृदयँ सनेह विसेषें। होत हृदयँ सनेह विसेषें । भगवान् के नाम का सुमरन करना चाहिये, ध्यान के बिना भी तो भगवान् के वहां विशेष प्रेम हो जाता है, प्रेम होने से भगवान् मिल जाते हैं। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ हरि सब जगहमें सम भावसे विराजमान हैं और वे प्रेम से प्रकट होते हैं, शिवजी कहते हैं इस बात को मैं जानता हूँ।

©N S Yadav GoldMine

#mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क

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अगर पागल मैं नशे पर उतर आया ना तो पहले पायदान पर मोहब्बत ही होगी ©DANVEER SINGH DUNIYA

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©DANVEER SINGH DUNIYA

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