कितने दिन बीत गए हैं, और तुमसे बात नहीं हुई।
नहीं, ये झूठ है, बात तो हुई है तुमसे। हर रोज़ होती है।
तुम्हे सवाल पूछता हूं, और खुद ही खुद को तुम्हारा ज़वाब भी दे देता हूं।
खुद में तुम को रख के, तुमसे बात कर लिया करता हूं। गुमान भी होता है खुद पर, कि तुमसे बात करने के लिए मैं तुम्हारा मोहताज़ नहीं हूं। तुमको मैंने अपने अंदर छुपा रखा है। तुम्हारी आवाज़ को अपनी धड़कनों के साथ बांध रखा है। ये धड़कती है और तुम्हारी आवाज़ मेरे दिल को सुनाई दे जाती है। हां रोज व्हाट्सएप का स्टेटस ज़रूर देखता हूं, शायद तुम दिख जाओ, कभी दिख जाती हो, तो जितना मुमकिन होता है, तुम्हे निहार लेता हूं। तुम्हारी तस्वीर से ही ढेरों बातें कर लेता हूं। तुमसे हजारों शिकायते भी कर लेता हूं, और तुम्हारी तरफ़ से खुद को उन शिकायतों का ज़वाब भी दे देता हूं।
बस, फिर भी तुम्हारी याद बहुत आती है। तुमसे ढेरों बातें करने का मन करता है। तुम्हे फ़ोन मिलाने का मन करता है, मगर फिर रुक जाता हूं। तुम बिजी हुई तो, तुमने फोन नहीं उठाया तो, तुमने मैसेज किया की फ्री हो के फ़ोन करती हूं, मगर फिर भी नहीं किया तो, शायद मैं और ज्यादा उदास हो जाऊंगा, और ज्यादा नाउम्मीद हो जाऊंगा। बस इसीलिए "तुम" भी मैं ही बन जाता हूं और खुद ही अपने आसूं पोंछ लेता हूं।
मगर हां, तुम्हारी याद बहुत आती है।
तुम्हारा नहीं,
इकराश़
©इकराश़
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