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White दोहा :- ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर । बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।। संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात । बूँद-बूँद से भर घड़ा , आयी है बरसात ।। रोते फिरते आज जो, नही पास व्यापार । बैठे-बैठै लोग वह , वृक्ष करें तैयार ।। काम बड़ा छोटा नहीं , करो समय से काम । याद रखें ये आप भी , साथ रहें श्री राम ।। अधिक हुआ विज्ञान अब , आगे दिखे विनाश । सोच-सोच मानव सभी , होने लगे निराश ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :-

ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर ।
बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।।

संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात ।
बूँद-बूँद से भर घड़ा , आयी है बरसात ।।

रोते फिरते आज जो, नही पास व्यापार ।
बैठे-बैठै लोग वह , वृक्ष करें तैयार ।।

काम बड़ा छोटा नहीं , करो समय से काम ।
याद रखें ये आप भी , साथ रहें श्री राम ।।

अधिक हुआ विज्ञान अब , आगे दिखे विनाश ।
सोच-सोच मानव सभी , होने लगे निराश ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर । बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।। संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात । बूँद-बूँद से भर घड़ा

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ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।। दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई । मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।। गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था । पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।। खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए । मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।। कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले । निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।। हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे । देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।। कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये । आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।। जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर । जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग

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सरसी छन्द गीत :- निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख । निकल रहा है धन काला अब.... मैं जनता का हूँ सेवक जो , भरते रहे हुँकार । घर के उनसे निकल रहा है , नोटों का भण्डार ।। क्या कहें चमत्कार हुआ या,  बिगड़ी इनकी रेख । निकल रहा है धन काला .... खूब उठाते हैं उँगली यह , मोदी पे कुछ लोग । जनता सेवा करने में जो , किए खूब उपभोग ।। घर पर तो व्यापार नही था , बदली कैसी रेख । निकल रहा है धन काला अब ...... सोच नहीं जो हम तुम पाये , मोदी ने ली सोच । कुछ तो गड़बड़ भैय्या मेरे , आयी कैसी लोच ।। मार-मार कर मंतर कैसे , बनकर बैठे शेख़ । निकल रहा है धन काला अब ... निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  सरसी छन्द गीत :-
निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख ।
काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।
निकल रहा है धन काला अब....

मैं जनता का हूँ सेवक जो , भरते रहे हुँकार ।
घर के उनसे निकल रहा है , नोटों का भण्डार ।।
क्या कहें चमत्कार हुआ या,  बिगड़ी इनकी रेख ।
निकल रहा है धन काला ....

खूब उठाते हैं उँगली यह , मोदी पे कुछ लोग ।
जनता सेवा करने में जो , किए खूब उपभोग ।।
घर पर तो व्यापार नही था , बदली कैसी रेख ।
निकल रहा है धन काला अब ......

सोच नहीं जो हम तुम पाये , मोदी ने ली सोच ।
कुछ तो गड़बड़ भैय्या मेरे , आयी कैसी लोच ।।
मार-मार कर मंतर कैसे , बनकर बैठे शेख़ ।
निकल रहा है धन काला अब ...

निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख ।
काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सरसी छन्द गीत :- निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।

15 Love

#विचार #Morning  Black जैसे सुरज जब उदय होत होता है तब 
वो थोढ़ी सी हि रोशनि देता है मतलब उदय हो रहा है
फिर धीरे धीरे पुरे संसार मे फैल जाता है
ठीक उसि प्रकार हमे अपने व्यापार भी
छोटे स्तर से शुरु करना चाहिये
ताकि जो परेशानिया ,सवाल हो
वो सारे पहले अध्याय मे हि निबत जाये..
बाकि सवाल सुलझाने के लिये
 बाद मे किसी भी प्रकार कि समस्या ना हो
पर लोग नहि जानते,वो लोग 
अपना व्यवसाय कुछ महीनो कुछ सालो 
बाद ही डूबा बैठते है..!
ये अक्सर सभी नवयवको से होता है,
अधिक धन के आवेश मे,बिना दृण विश्वाश के..!!

©HARSH369

#Morning कि तरह व्यापार

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White गीत :- मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।। मानव सेवा करने को अब... हम आज तुम्हारे शुभचिंतक , करो न हमसे बैर । सबको हृदय बसाकर रखता , कहीं न कोई गैर ।। पाँच-साल में जब भी मौका, मिलता आता द्वार । खोल हृदय के पट दिखलाता , तुमको अपना प्यार ।। मानव सेवा करने को अब ... देखो ढ़ोंगी और लालची , उतरे हैं मैदान । उनकी मीठी बातों में अब , आना मत इंसान ।। मुझको कहकर भला बुरा वह , लेंगें तुमको जीत । पर उनकी बातें मत सुनना, होगी तेरी हार । मानव सेवा करने को अब..... सब ही ऐसा कहकर जाते , किसकी माने बात । सच कहते हो कैसे मानूँ , नहीं करोगे घात ।। अब जागरूक है ये जनता ,ये तेरा व्यापार । अपनों को तो भूल गये हो , हमे दिखाओ प्यार ।। मानव सेवा करने को अब .... सच्ची-सच्ची बात बताओ , इस दौलत का राज । मुश्किल हमको रोटी होती , सफल तुम्हारे काज ।। सम्पत्तिन तुम्हारे पिता की, और नहीं व्यापार । हमकों मीठी बात बताकर , लूटो देश हमार । मानव सेवा करने को अब..... मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।। २०/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार ।
देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।।
मानव सेवा करने को अब...

हम आज तुम्हारे शुभचिंतक , करो न हमसे बैर ।
सबको हृदय बसाकर रखता , कहीं न कोई गैर ।।
पाँच-साल में जब भी मौका, मिलता आता द्वार ।
खोल हृदय के पट दिखलाता , तुमको अपना प्यार ।।
मानव सेवा करने को अब ...

देखो ढ़ोंगी और लालची , उतरे हैं मैदान ।
उनकी मीठी बातों में अब , आना मत इंसान ।।
मुझको कहकर भला बुरा वह , लेंगें तुमको जीत ।
पर उनकी बातें मत सुनना, होगी तेरी हार ।
मानव सेवा करने को अब.....

सब ही ऐसा कहकर जाते , किसकी माने बात ।
सच कहते हो कैसे मानूँ , नहीं करोगे घात ।।
अब जागरूक है ये जनता ,ये तेरा व्यापार ।
अपनों को तो भूल गये हो , हमे दिखाओ प्यार ।।
मानव सेवा करने को अब ....

सच्ची-सच्ची बात बताओ , इस दौलत का राज ।
मुश्किल हमको रोटी होती , सफल तुम्हारे काज ।।
सम्पत्तिन तुम्हारे पिता की, और नहीं व्यापार ।
हमकों मीठी बात बताकर , लूटो देश हमार ।
मानव सेवा करने को अब.....

मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार ।
देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।।

२०/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।। मानव सेवा करने को अब... हम आज तुम्हारे शुभचिंतक ,

13 Love

सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।। लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है । आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।। १ भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं । दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।। प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में । खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।। २ प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो । प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।। प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते । जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।। ३ प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये । प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।। प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है । प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।। ०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  सीता छन्द
मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२
वर्ण :-  १५
राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।
प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।।
लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है ।
आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।।
१
भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं ।
दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।।
प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में ।
खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।।
२
प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो ।
प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।।
प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते ।
जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।।
३
प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये ।
प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।।
प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है ।
प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।।
०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।

14 Love

White दोहा :- ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर । बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।। संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात । बूँद-बूँद से भर घड़ा , आयी है बरसात ।। रोते फिरते आज जो, नही पास व्यापार । बैठे-बैठै लोग वह , वृक्ष करें तैयार ।। काम बड़ा छोटा नहीं , करो समय से काम । याद रखें ये आप भी , साथ रहें श्री राम ।। अधिक हुआ विज्ञान अब , आगे दिखे विनाश । सोच-सोच मानव सभी , होने लगे निराश ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :-

ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर ।
बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।।

संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात ।
बूँद-बूँद से भर घड़ा , आयी है बरसात ।।

रोते फिरते आज जो, नही पास व्यापार ।
बैठे-बैठै लोग वह , वृक्ष करें तैयार ।।

काम बड़ा छोटा नहीं , करो समय से काम ।
याद रखें ये आप भी , साथ रहें श्री राम ।।

अधिक हुआ विज्ञान अब , आगे दिखे विनाश ।
सोच-सोच मानव सभी , होने लगे निराश ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर । बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।। संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात । बूँद-बूँद से भर घड़ा

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ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।। दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई । मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।। गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था । पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।। खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए । मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।। कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले । निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।। हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे । देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।। कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये । आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।। जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर । जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग

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सरसी छन्द गीत :- निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख । निकल रहा है धन काला अब.... मैं जनता का हूँ सेवक जो , भरते रहे हुँकार । घर के उनसे निकल रहा है , नोटों का भण्डार ।। क्या कहें चमत्कार हुआ या,  बिगड़ी इनकी रेख । निकल रहा है धन काला .... खूब उठाते हैं उँगली यह , मोदी पे कुछ लोग । जनता सेवा करने में जो , किए खूब उपभोग ।। घर पर तो व्यापार नही था , बदली कैसी रेख । निकल रहा है धन काला अब ...... सोच नहीं जो हम तुम पाये , मोदी ने ली सोच । कुछ तो गड़बड़ भैय्या मेरे , आयी कैसी लोच ।। मार-मार कर मंतर कैसे , बनकर बैठे शेख़ । निकल रहा है धन काला अब ... निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  सरसी छन्द गीत :-
निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख ।
काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।
निकल रहा है धन काला अब....

मैं जनता का हूँ सेवक जो , भरते रहे हुँकार ।
घर के उनसे निकल रहा है , नोटों का भण्डार ।।
क्या कहें चमत्कार हुआ या,  बिगड़ी इनकी रेख ।
निकल रहा है धन काला ....

खूब उठाते हैं उँगली यह , मोदी पे कुछ लोग ।
जनता सेवा करने में जो , किए खूब उपभोग ।।
घर पर तो व्यापार नही था , बदली कैसी रेख ।
निकल रहा है धन काला अब ......

सोच नहीं जो हम तुम पाये , मोदी ने ली सोच ।
कुछ तो गड़बड़ भैय्या मेरे , आयी कैसी लोच ।।
मार-मार कर मंतर कैसे , बनकर बैठे शेख़ ।
निकल रहा है धन काला अब ...

निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख ।
काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।

महेन्द्र सिंह प्रखर

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सरसी छन्द गीत :- निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।

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#विचार #Morning  Black जैसे सुरज जब उदय होत होता है तब 
वो थोढ़ी सी हि रोशनि देता है मतलब उदय हो रहा है
फिर धीरे धीरे पुरे संसार मे फैल जाता है
ठीक उसि प्रकार हमे अपने व्यापार भी
छोटे स्तर से शुरु करना चाहिये
ताकि जो परेशानिया ,सवाल हो
वो सारे पहले अध्याय मे हि निबत जाये..
बाकि सवाल सुलझाने के लिये
 बाद मे किसी भी प्रकार कि समस्या ना हो
पर लोग नहि जानते,वो लोग 
अपना व्यवसाय कुछ महीनो कुछ सालो 
बाद ही डूबा बैठते है..!
ये अक्सर सभी नवयवको से होता है,
अधिक धन के आवेश मे,बिना दृण विश्वाश के..!!

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#Morning कि तरह व्यापार

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White गीत :- मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।। मानव सेवा करने को अब... हम आज तुम्हारे शुभचिंतक , करो न हमसे बैर । सबको हृदय बसाकर रखता , कहीं न कोई गैर ।। पाँच-साल में जब भी मौका, मिलता आता द्वार । खोल हृदय के पट दिखलाता , तुमको अपना प्यार ।। मानव सेवा करने को अब ... देखो ढ़ोंगी और लालची , उतरे हैं मैदान । उनकी मीठी बातों में अब , आना मत इंसान ।। मुझको कहकर भला बुरा वह , लेंगें तुमको जीत । पर उनकी बातें मत सुनना, होगी तेरी हार । मानव सेवा करने को अब..... सब ही ऐसा कहकर जाते , किसकी माने बात । सच कहते हो कैसे मानूँ , नहीं करोगे घात ।। अब जागरूक है ये जनता ,ये तेरा व्यापार । अपनों को तो भूल गये हो , हमे दिखाओ प्यार ।। मानव सेवा करने को अब .... सच्ची-सच्ची बात बताओ , इस दौलत का राज । मुश्किल हमको रोटी होती , सफल तुम्हारे काज ।। सम्पत्तिन तुम्हारे पिता की, और नहीं व्यापार । हमकों मीठी बात बताकर , लूटो देश हमार । मानव सेवा करने को अब..... मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।। २०/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार ।
देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।।
मानव सेवा करने को अब...

हम आज तुम्हारे शुभचिंतक , करो न हमसे बैर ।
सबको हृदय बसाकर रखता , कहीं न कोई गैर ।।
पाँच-साल में जब भी मौका, मिलता आता द्वार ।
खोल हृदय के पट दिखलाता , तुमको अपना प्यार ।।
मानव सेवा करने को अब ...

देखो ढ़ोंगी और लालची , उतरे हैं मैदान ।
उनकी मीठी बातों में अब , आना मत इंसान ।।
मुझको कहकर भला बुरा वह , लेंगें तुमको जीत ।
पर उनकी बातें मत सुनना, होगी तेरी हार ।
मानव सेवा करने को अब.....

सब ही ऐसा कहकर जाते , किसकी माने बात ।
सच कहते हो कैसे मानूँ , नहीं करोगे घात ।।
अब जागरूक है ये जनता ,ये तेरा व्यापार ।
अपनों को तो भूल गये हो , हमे दिखाओ प्यार ।।
मानव सेवा करने को अब ....

सच्ची-सच्ची बात बताओ , इस दौलत का राज ।
मुश्किल हमको रोटी होती , सफल तुम्हारे काज ।।
सम्पत्तिन तुम्हारे पिता की, और नहीं व्यापार ।
हमकों मीठी बात बताकर , लूटो देश हमार ।
मानव सेवा करने को अब.....

मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार ।
देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।।

२०/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले ,  होता खूब प्रचार ।। मानव सेवा करने को अब... हम आज तुम्हारे शुभचिंतक ,

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सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।। लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है । आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।। १ भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं । दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।। प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में । खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।। २ प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो । प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।। प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते । जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।। ३ प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये । प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।। प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है । प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।। ०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  सीता छन्द
मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२
वर्ण :-  १५
राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।
प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।।
लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है ।
आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।।
१
भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं ।
दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।।
प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में ।
खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।।
२
प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो ।
प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।।
प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते ।
जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।।
३
प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये ।
प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।।
प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है ।
प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है  ।।
०१/०४/२०२४  -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सीता छन्द मापनी:- २१२२   २१२२   २१२२  २१२ वर्ण :-  १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।

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