White लड़की बनके है जन्म लिया
मानू मैं हर मर्यादा समाज की
में तो शुभचिंतक हूं समाज की ।
पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है
आज भी
मैं पालना करू हर उस बात की
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।
बचपन से लेकर अब तक
यही है मुझको सिखलाया
बेटी को संस्कार सभी हो
कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की।
मै तो शुभ चिंतक हू समाज की।
मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी
वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी।
मैं क्या ही बात करू अधिकार की
मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।।
मेरी लाज काज के रक्षक वो है ।
फिर भोगी में बलात्कार की
कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ
बात उठती ही नहीं सम्मान की।
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की
कोई भोर भरे उठ जाता है
कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की
कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन
निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की
करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक
नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की ।
मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।।
वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है
स्त्री कमजोर नहीं
मगर पुरषो के समाज को स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है
जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है
©an aspirant nilu
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here