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New ये शाम कविता Status, Photo, Video

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#लव  मुझे तुम नहीं, तुम्हारा साथ चाहिए ।
तेरे साथ खुल कर जीने का एहसास चाहिए ।
जो वक्त बीत चुका उसका भी हिसाब चाहिए।
यूं हम दोनों साथ बने रहें 
ऐसा मुझे विश्वास चाहिए।
वह बीती शाम नहीं बस, कुछ 
पल तुम्हारा मेरे साथ भी चाहिए।

©मुसाफिर

#वो शाम

252 View

#Quotes  उलझे हुए दिन का सार अच्छा है 
ये ढलती हुई शाम अच्छी है...

©PB Creator

ढलती शाम।।।

108 View

#विचार #beautifulmoon  Beautiful Moon Night बहुत अरसा गुजर गया है,
हंसे हुए एक साथ,
वो शाम अब नहीं आती,

©Raxx

#beautifulmoon शाम

126 View

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#ज़िन्दगी

दुख के ताक़ पे शाम ढले किस ने दिया जलाया था ... हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में ... आ गई याद शाम ढलते ही ... फिर याद बहुत आएगी ज़ु

126 View

एक शाम आए वहीं..... जहां मिला करते थे.... नजारे महोब्बत के....!! . . . ©Nik JAT

#शाम  एक शाम आए वहीं.....
जहां मिला करते थे....
नजारे महोब्बत के....!!
.
.
.

©Nik JAT

#शाम

18 Love

#लव  मुझे तुम नहीं, तुम्हारा साथ चाहिए ।
तेरे साथ खुल कर जीने का एहसास चाहिए ।
जो वक्त बीत चुका उसका भी हिसाब चाहिए।
यूं हम दोनों साथ बने रहें 
ऐसा मुझे विश्वास चाहिए।
वह बीती शाम नहीं बस, कुछ 
पल तुम्हारा मेरे साथ भी चाहिए।

©मुसाफिर

#वो शाम

252 View

#Quotes  उलझे हुए दिन का सार अच्छा है 
ये ढलती हुई शाम अच्छी है...

©PB Creator

ढलती शाम।।।

108 View

#विचार #beautifulmoon  Beautiful Moon Night बहुत अरसा गुजर गया है,
हंसे हुए एक साथ,
वो शाम अब नहीं आती,

©Raxx

#beautifulmoon शाम

126 View

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#ज़िन्दगी

दुख के ताक़ पे शाम ढले किस ने दिया जलाया था ... हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में ... आ गई याद शाम ढलते ही ... फिर याद बहुत आएगी ज़ु

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एक शाम आए वहीं..... जहां मिला करते थे.... नजारे महोब्बत के....!! . . . ©Nik JAT

#शाम  एक शाम आए वहीं.....
जहां मिला करते थे....
नजारे महोब्बत के....!!
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.
.

©Nik JAT

#शाम

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