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New केसांच्या वाढीसाठी आहार Status, Photo, Video

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ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।। दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई । मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।। गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था । पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।। खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए । मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।। कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले । निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।। हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे । देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।। कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये । आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।। जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर । जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग

12 Love

White दोहा संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान । तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।। अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान । अंग-अंग रहता खुला , कहता ऊँची शान ।। बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार । वह भी फैशन में छिने , अब सब बे अधिकार ।। मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास । भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली खास ।। जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात । अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।

जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।

प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।

अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रहता खुला , कहता ऊँची शान ।।

 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , अब सब बे अधिकार ।।

मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली खास ।।

जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , म

10 Love

White दोहा :- संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान । तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।। अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान । अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।।  बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार । वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।। मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास । भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।। जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात । अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :-

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।
जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।
प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।
अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।।
 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।।
मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।।
जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव

12 Love

#Motivational

आज के इंसान का सबसे पोष्टिक आहार   " धोखा "

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#विचार #love_shayari  White महाभारत: आश्रमवासिक पर्व 
एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्नी गान्धारी और बहू कुन्ती के साथ नृपश्रेष्ठ पृथ्वी पति धृतराष्ट्र वनवास के लिये चले गये, विदुर जी सिद्धि को प्राप्त होकर धर्मराज युधिष्ठिर के शरीर में प्रविष्ट हो गये और समस्त पाण्डव आश्रम मण्डल में निवास करने लगे, उस समय परम तेजस्वी व्यास जी ने जो यह कहा था कि मैं आश्चर्यजनक घटना प्रकट करूँगा वह किस प्रकार हुई? यह मुझे बतायें। अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले कुरूवंशी राजा युधिष्ठिर कितने दिनों तक सब लोगों के साथ वन में रहे थे? प्रभो। निष्पाप मुने। सैनिकों और अन्तःपुर की स्त्रियों के साथ वे महात्मा पाण्डव क्या आहार करके वहाँ निवास करते थे? वैशम्पायन जी ने कहा । कुरूराज धर्तराष्ट्र पाण्डवों को नाना प्रकार के अन्न-पान ग्रहण करने की आज्ञा दे दी थी, अतः वे वहाँ विश्राम पाकर सभी तरह के उत्तम भोजन करते थे। 

📒 इसी बीच में जैसाकि मैनें तुम्हें बताया है, वहाँ व्यास जी का आगमन हुआ। राजन्। राजा धृतराष्ट्रके समीप व्यास जी के पीछे उन सब लोगों में जब उपयुक्त बातें होती रहीं, उसी समय वहाँ दूसरे-दूसरे मुनि भी आये। भारत। उन में नारद, पर्वत, महातपस्वी देवल, विश्वावसु, तुम्बरू तथा चित्रसेन भी थे। धृतराष्ट्र की आज्ञा से महातपस्वी कुरूराज युधिष्ठिर ने उन सब की भी यथोचित पूजा की। युधिष्ठिर से पूजा ग्रहण करके वे सब के सब मोरपंख के बने हुए पवित्र एवं श्रेष्ठ आसनों पर विराजमान हुए। कुरूश्रेष्ठ। उन सब के बैठ जाने पर पाण्डवों से घिरे हुए परम बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र बैठे। गान्धारी, कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा तथा दूसरी स्त्रियाँ अन्य स्त्रियों के साथ आस -पास ही एक साथ बैठ गयीं। नरेश्वर। उस समय उन लोगों में धर्म से सम्बन्ध रखने वाली दिव्य कथाएँ होने लगीं। प्राचीन ऋषियों तथा देवताओं और असुरों से सम्बन्ध रखने वाली चर्चाएँ छिड़ गयीं।

📒 बातचीत के अन्त में सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं और वक्ताओं में श्रेष्ठ महातेजस्वी महर्षि व्यास जी ने प्रसन्न होकर प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र से पुन: वही बात कही। राजेन्द्र। तुम्हारे हृदय में जो कहने की इच्छा हो रही है, उसे मैं जानता हूँ। तुम निरन्तर अपने मरे हुए पुत्रों के शोक से जलते रहते हो। महाराजा। गान्धारी, कुन्ती और द्रौपदी के हृदय में भी जो दुःख सदा बना रहता है, वह भी मुझे ज्ञात है। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के मारे जाने का जो दुःसह दुःख हृदय में धारण करती है, वह भी मुझे अज्ञात नहीं है। कौरवनन्दन। नरेश्वर। वास्तव में तुम सब लोगों का यह समागम सुनकर तुम्हारे मानसिक संदेहों का निवारण करने के लिये मैं यहाँ आया हूँ। ये देवता, गन्धर्व और महर्षि सब लोग आज मेरी चिरसंचित तपस्या का प्रभाव देखें।l

©N S Yadav GoldMine

#love_shayari महाभारत: आश्रमवासिक पर्व एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्

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#शायरी #Sawera  देखते हैं ये जिंदगी हमें कब तक भटकाएगी
किसी दिन तो कोशिशें हमारी भी रंग लाएंगी,
उस रोज हम आराम से बैठेंगे अपने घर में
और कामयाबी बहार दरवाजा खटखटाएगी।

©Salim Saha

#Sawera कामयाबीन आहार दरवाजाकडे#

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ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।। दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई । मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।। गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था । पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।। खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए । मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।। कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले । निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।। हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे । देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।। कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये । आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।। जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर । जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है ।
सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।।
जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया ।
ये बताता युग हमारा धर्म शिष्टाचार है ।।
दूर दुनिया देख लो यह आज इतनी हो गई ।
मान भी लो आज पीछे चलना भी बेकार है ।।
गर्व था मुझको कभी ये यह हमारा धर्म था ।
पर पतन की राह जाते देखूँ मैं धिक्कार है ।।
खो गई मेरी जवानी सबको समझाते हुए ।
मैं यहीं थककर  रुका तो ये हमारी हार है ।।
कर रहीं सरकार हैं अब आज ऐसे फैसले ।
निर्बलों की आज गर्दन पे धरी तलवार है ।।
हाय मत लेना किसी की ज्ञानियों के बोल थे ।
देखता हूँ थाल उनकी नित्य वो आहार है ।।
कुछ बिगड़ बच्चे गये तो कुछ बिलखकर सो गये ।
आज दोनों के पिता ही देख लो लाचार है ।।
जो कभी सोये नही उनको जगाता क्यों प्रखर ।
जानतें है सब यहाँ पे जान का व्यापार है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तू जिसे है देखता वो तो पराई नार है । सीरियल से मिल रहे जो अब यहाँ संस्कार है ।। जीव हत्या कर रहा  है नाम पशुपालन दिया । ये बताता युग

12 Love

White दोहा संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान । तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।। अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान । अंग-अंग रहता खुला , कहता ऊँची शान ।। बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार । वह भी फैशन में छिने , अब सब बे अधिकार ।। मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास । भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली खास ।। जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात । अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।

जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।

प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।

अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रहता खुला , कहता ऊँची शान ।।

 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , अब सब बे अधिकार ।।

मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली खास ।।

जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , म

10 Love

White दोहा :- संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान । तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।। अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान । अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।।  बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार । वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।। मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास । भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।। जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात । अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :-

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।
जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।
प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।
अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।।
 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।।
मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।।
जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव

12 Love

#Motivational

आज के इंसान का सबसे पोष्टिक आहार   " धोखा "

135 View

#विचार #love_shayari  White महाभारत: आश्रमवासिक पर्व 
एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्नी गान्धारी और बहू कुन्ती के साथ नृपश्रेष्ठ पृथ्वी पति धृतराष्ट्र वनवास के लिये चले गये, विदुर जी सिद्धि को प्राप्त होकर धर्मराज युधिष्ठिर के शरीर में प्रविष्ट हो गये और समस्त पाण्डव आश्रम मण्डल में निवास करने लगे, उस समय परम तेजस्वी व्यास जी ने जो यह कहा था कि मैं आश्चर्यजनक घटना प्रकट करूँगा वह किस प्रकार हुई? यह मुझे बतायें। अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले कुरूवंशी राजा युधिष्ठिर कितने दिनों तक सब लोगों के साथ वन में रहे थे? प्रभो। निष्पाप मुने। सैनिकों और अन्तःपुर की स्त्रियों के साथ वे महात्मा पाण्डव क्या आहार करके वहाँ निवास करते थे? वैशम्पायन जी ने कहा । कुरूराज धर्तराष्ट्र पाण्डवों को नाना प्रकार के अन्न-पान ग्रहण करने की आज्ञा दे दी थी, अतः वे वहाँ विश्राम पाकर सभी तरह के उत्तम भोजन करते थे। 

📒 इसी बीच में जैसाकि मैनें तुम्हें बताया है, वहाँ व्यास जी का आगमन हुआ। राजन्। राजा धृतराष्ट्रके समीप व्यास जी के पीछे उन सब लोगों में जब उपयुक्त बातें होती रहीं, उसी समय वहाँ दूसरे-दूसरे मुनि भी आये। भारत। उन में नारद, पर्वत, महातपस्वी देवल, विश्वावसु, तुम्बरू तथा चित्रसेन भी थे। धृतराष्ट्र की आज्ञा से महातपस्वी कुरूराज युधिष्ठिर ने उन सब की भी यथोचित पूजा की। युधिष्ठिर से पूजा ग्रहण करके वे सब के सब मोरपंख के बने हुए पवित्र एवं श्रेष्ठ आसनों पर विराजमान हुए। कुरूश्रेष्ठ। उन सब के बैठ जाने पर पाण्डवों से घिरे हुए परम बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र बैठे। गान्धारी, कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा तथा दूसरी स्त्रियाँ अन्य स्त्रियों के साथ आस -पास ही एक साथ बैठ गयीं। नरेश्वर। उस समय उन लोगों में धर्म से सम्बन्ध रखने वाली दिव्य कथाएँ होने लगीं। प्राचीन ऋषियों तथा देवताओं और असुरों से सम्बन्ध रखने वाली चर्चाएँ छिड़ गयीं।

📒 बातचीत के अन्त में सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं और वक्ताओं में श्रेष्ठ महातेजस्वी महर्षि व्यास जी ने प्रसन्न होकर प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र से पुन: वही बात कही। राजेन्द्र। तुम्हारे हृदय में जो कहने की इच्छा हो रही है, उसे मैं जानता हूँ। तुम निरन्तर अपने मरे हुए पुत्रों के शोक से जलते रहते हो। महाराजा। गान्धारी, कुन्ती और द्रौपदी के हृदय में भी जो दुःख सदा बना रहता है, वह भी मुझे ज्ञात है। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के मारे जाने का जो दुःसह दुःख हृदय में धारण करती है, वह भी मुझे अज्ञात नहीं है। कौरवनन्दन। नरेश्वर। वास्तव में तुम सब लोगों का यह समागम सुनकर तुम्हारे मानसिक संदेहों का निवारण करने के लिये मैं यहाँ आया हूँ। ये देवता, गन्धर्व और महर्षि सब लोग आज मेरी चिरसंचित तपस्या का प्रभाव देखें।l

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#love_shayari महाभारत: आश्रमवासिक पर्व एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्

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#शायरी #Sawera  देखते हैं ये जिंदगी हमें कब तक भटकाएगी
किसी दिन तो कोशिशें हमारी भी रंग लाएंगी,
उस रोज हम आराम से बैठेंगे अपने घर में
और कामयाबी बहार दरवाजा खटखटाएगी।

©Salim Saha

#Sawera कामयाबीन आहार दरवाजाकडे#

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