टक टक टीस की तरह ये जो पीड़ा है हृदय में
तुमारी स्मृति तो समृद्धि है, मेरा अहम है इस धरातल में
मेरा प्रेम , चरित्र से कमतर था, साहस नहीं जुटा पाया सत्य बताने का
थोड़ा तो कुछ तुममें भी था, स्माहला नहीं तुमने
थोड़ा सा तुमने की होती पहल एक पग तो,
मै चलता सहस्त्र योजन आत्मग्लानी का
एक एक कण से उद्गागर में तुमारा ही नाम आ रहा है, इश हो तुम मेरी।
वाणी में इतना बल नहीं की समझा दे, फल तुमसे विरह का
इस जीवन में एक पीड़ा तो सदा की जला ली है अब।
ये ऐसी चोट है, समय का भी सामर्थ्य नहीं है इसे मिटाने का।
शायद असत्य ही सही एक बार अपना नेह की परीक्षा दे दो।
नष्ट कर दूंगा मेरा मैं, और उदासीन अन्तर्मन।
टक .....।
©mautila registan(Naveen Pandey)
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