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New दिवसाच्या वेगवेगळ्या अवस्था कोणत्या Status, Photo, Video

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#poetrycommunity #मराठी #tarukikalam25 #indianwriter #Trending

शीर्षक पापा की सीख बाबांकडून एक धडा विधा वास्तविक भाव पता नहीं आज मन में बहुत उलझन सी हो रही है हिन्दी अनुवाद पापा की एक सीख

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#मोटिवेशनल #Blood  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
सब कुछ भगवान श्री कृष्ण हैं :- 
जिन के चरणों में स्वयं प्रकाश हैं, वह सबके साक्षी परमात्मा हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो मन, वाणी और चित्त से अत्यंत दूर हैं- उन परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ। विवेकी पुरुष कर्म-सन्यास अथवा कर्म-समर्पण के द्वारा अपना अन्तःकरण शुद्ध करके जिन्हें प्राप्त करते हैं तथा जो स्वयं तो नित्यमुक्त, परमानन्द एवं ज्ञानस्वरूप हैं, दूसरों को कैवल्य-मुक्ति देने की सामर्थ्य भी केवल उन्हीं में हैं- उन प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ।।जो सत्व, रज, तम- इन तीन गुणों का धर्म स्वीकार करके क्रमशः शांत, घोर और मूढ़ अवस्था भी धारण करते हैं, उन भेद रहित समभाव से स्थित एवं ज्ञानघन प्रभु को मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ।

©N S Yadav GoldMine

#Blood {Bolo Ji Radhey Radhey} सब कुछ भगवान श्री कृष्ण हैं :- जिन के चरणों में स्वयं प्रकाश हैं, वह सबके साक्षी परमात्मा हैं, उनको मैं नमस्

126 View

#विचार #mothers_day  White गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं- ध्यानहेयास्तद् वृत्तयः॥
 (पातञ्जलयोगदर्शन २: ११) 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
तो सूक्ष्ममय जो वृत्तियाँ हैं पहले सेती वो ध्यान करके हैं, ध्यान करके त्याग, माने ध्यान के प्रभाव से सूक्ष्म वृत्तियां भी खत्म हो जाती हैं एक प्रकार से, तो ध्यान की सभी कोई महिमा गाते हैं। सभी शास्त्र अर गीता का तो विशेष लक्ष्य है, गीता का जोर तो भगवान् के नाम के जप के ऊपर इतना नहीं है, कि जितना भगवान् के स्वरूप के चिंतन के ऊपर है, स्मरणके ऊपर है, स्मरण की जो आगे की अवस्था हैं वो ही चिंतन है और चिंतन की और अवस्था जब बढ़ जाती है, तो चिंतन ही ध्यान बन जाता है। भगवान् के स्वरूप की जो यादगिरी है उसका नाम स्मरण है, अर उसका जो एक प्रकारसे मनसेती स्वरूप पकड़े रहता है, उसकी आकृति भूलते नहीं हैं, वह होता है चिंतन, अर वह ऐसा हो जाता है कि अपने आपका बाहरका उसका ज्ञान ही नहीं रवे एकतानता ध्यानं, एक तार समझो कि उस तरह का ध्यान निरंतर बण्या रवे, वह है सो ध्यान का स्वरूप है, तो परमात्मा का जो ध्यान है वह तो बहुत ही उत्तम है। तो परमात्माकी प्राप्ति तो ध्यानसे शास्त्रों में बतलायी है। किंतु अपने को परमात्मा का ध्यान इसलिये करना है, कि ध्यान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। जितने जो साधन हैं वह साधन के लिये हैं, और ध्यान है जो परमात्मा के लिये है किंतु हम एक प्रकार से ध्यान तो करें, और परमात्मा को नहीं बुलावें तो परमात्मा समझो कि अपने आप ही वहाँ आते हैं। सुतीक्ष्ण जो है भगवान् से मिलने के लिये जा रहा है, तो उसका ध्यान अपने आप ही हो गया, ऐसा ध्यान लग गया कि फिर भगवान् आकर उसका ध्यान तोड़ना चावे तो भी नहीं टूटता है तो भगवान् कितने खुश हो गये उसके ध्यान को देखकर, उसके ध्यान को देख करके भगवान् है सो मुग्ध हो गये। बोल्या यदि ध्यान न हो तो, ध्यान न हो तो भगवान् के केवल नाम का जप ही करना चाहिये, भगवान् के नामके जप से, भगवान् के भजन सेती ही समझो कि परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि भगवान् के नाम का जप करने से भगवान् में प्रेम होता है, अर भगवान् के मायँ प्रेम होने से समझो कि भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। इसलिये नाम के जप से भी परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है, नाम के जप से सारे पापों का नाश हो जाता है, नाम के जप से परमात्माके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, नाम के जपसे भगवान् उसके वश में हो जाते हैं, नाम के जपसे उसकी आत्मा का उद्धार हो जाता है। तो सारी बात नाम के जप से हो जाती है, तो इसलिये समझो कि यदि ध्यान न लगे, तो भगवान् के नाम का निरंतर जप ही करना चाहिये।
  सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखे। सुमरिअ नाम रूप बिनु देखे। होत हृदयँ सनेह विसेषें। होत हृदयँ सनेह विसेषें । भगवान् के नाम का सुमरन करना चाहिये, ध्यान के बिना भी तो भगवान् के वहां विशेष प्रेम हो जाता है, प्रेम होने से भगवान् मिल जाते हैं। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ हरि सब जगहमें सम भावसे विराजमान हैं और वे प्रेम से प्रकट होते हैं, शिवजी कहते हैं इस बात को मैं जानता हूँ।

©N S Yadav GoldMine

#mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क

90 View

#भक्ति #Morning  Black {Bolo Ji Radhey Radhey}
हमारी आत्मा का प्रकति के जिस 
गुण का सम्बंध हो, वही गुण उसमें
 बसने लग जाता है, मनोववर्ति 
उसी का आकार धारण कर लेता है,
 इसीलिए  जो मनुष्य सम रह कर
 केवल अपने कर्तव्य कर्म करता है, 
वेर आदि की माया से ऊपर आत्मा 
मैं इस्थिर होता है,  उस अवस्था मे 
उस को पाप स्पर्स नही करता।।

©N S Yadav GoldMine

#Morning {Bolo Ji Radhey Radhey} हमारी आत्मा का प्रकति के जिस गुण का सम्बंध हो, वही गुण उसमें बसने लग जाता है, मनोववर्ति उसी का आकार धारण

135 View

 सहेली...
मजबूरी एक ऐसी अवस्था है..

जहाँ आपको अपनी पसंद का
सब कुछ छोड़ना पड़ता है..
लाला....

©Mahesh Patel

सहेली... अवस्था... लाला...

216 View

#poetrycommunity #मराठी #tarukikalam25 #indianwriter #Trending

शीर्षक पापा की सीख बाबांकडून एक धडा विधा वास्तविक भाव पता नहीं आज मन में बहुत उलझन सी हो रही है हिन्दी अनुवाद पापा की एक सीख

342 View

#मोटिवेशनल #Blood  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
सब कुछ भगवान श्री कृष्ण हैं :- 
जिन के चरणों में स्वयं प्रकाश हैं, वह सबके साक्षी परमात्मा हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो मन, वाणी और चित्त से अत्यंत दूर हैं- उन परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ। विवेकी पुरुष कर्म-सन्यास अथवा कर्म-समर्पण के द्वारा अपना अन्तःकरण शुद्ध करके जिन्हें प्राप्त करते हैं तथा जो स्वयं तो नित्यमुक्त, परमानन्द एवं ज्ञानस्वरूप हैं, दूसरों को कैवल्य-मुक्ति देने की सामर्थ्य भी केवल उन्हीं में हैं- उन प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ।।जो सत्व, रज, तम- इन तीन गुणों का धर्म स्वीकार करके क्रमशः शांत, घोर और मूढ़ अवस्था भी धारण करते हैं, उन भेद रहित समभाव से स्थित एवं ज्ञानघन प्रभु को मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ।

©N S Yadav GoldMine

#Blood {Bolo Ji Radhey Radhey} सब कुछ भगवान श्री कृष्ण हैं :- जिन के चरणों में स्वयं प्रकाश हैं, वह सबके साक्षी परमात्मा हैं, उनको मैं नमस्

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#विचार #mothers_day  White गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं- ध्यानहेयास्तद् वृत्तयः॥
 (पातञ्जलयोगदर्शन २: ११) 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
तो सूक्ष्ममय जो वृत्तियाँ हैं पहले सेती वो ध्यान करके हैं, ध्यान करके त्याग, माने ध्यान के प्रभाव से सूक्ष्म वृत्तियां भी खत्म हो जाती हैं एक प्रकार से, तो ध्यान की सभी कोई महिमा गाते हैं। सभी शास्त्र अर गीता का तो विशेष लक्ष्य है, गीता का जोर तो भगवान् के नाम के जप के ऊपर इतना नहीं है, कि जितना भगवान् के स्वरूप के चिंतन के ऊपर है, स्मरणके ऊपर है, स्मरण की जो आगे की अवस्था हैं वो ही चिंतन है और चिंतन की और अवस्था जब बढ़ जाती है, तो चिंतन ही ध्यान बन जाता है। भगवान् के स्वरूप की जो यादगिरी है उसका नाम स्मरण है, अर उसका जो एक प्रकारसे मनसेती स्वरूप पकड़े रहता है, उसकी आकृति भूलते नहीं हैं, वह होता है चिंतन, अर वह ऐसा हो जाता है कि अपने आपका बाहरका उसका ज्ञान ही नहीं रवे एकतानता ध्यानं, एक तार समझो कि उस तरह का ध्यान निरंतर बण्या रवे, वह है सो ध्यान का स्वरूप है, तो परमात्मा का जो ध्यान है वह तो बहुत ही उत्तम है। तो परमात्माकी प्राप्ति तो ध्यानसे शास्त्रों में बतलायी है। किंतु अपने को परमात्मा का ध्यान इसलिये करना है, कि ध्यान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। जितने जो साधन हैं वह साधन के लिये हैं, और ध्यान है जो परमात्मा के लिये है किंतु हम एक प्रकार से ध्यान तो करें, और परमात्मा को नहीं बुलावें तो परमात्मा समझो कि अपने आप ही वहाँ आते हैं। सुतीक्ष्ण जो है भगवान् से मिलने के लिये जा रहा है, तो उसका ध्यान अपने आप ही हो गया, ऐसा ध्यान लग गया कि फिर भगवान् आकर उसका ध्यान तोड़ना चावे तो भी नहीं टूटता है तो भगवान् कितने खुश हो गये उसके ध्यान को देखकर, उसके ध्यान को देख करके भगवान् है सो मुग्ध हो गये। बोल्या यदि ध्यान न हो तो, ध्यान न हो तो भगवान् के केवल नाम का जप ही करना चाहिये, भगवान् के नामके जप से, भगवान् के भजन सेती ही समझो कि परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि भगवान् के नाम का जप करने से भगवान् में प्रेम होता है, अर भगवान् के मायँ प्रेम होने से समझो कि भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। इसलिये नाम के जप से भी परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है, नाम के जप से सारे पापों का नाश हो जाता है, नाम के जप से परमात्माके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, नाम के जपसे भगवान् उसके वश में हो जाते हैं, नाम के जपसे उसकी आत्मा का उद्धार हो जाता है। तो सारी बात नाम के जप से हो जाती है, तो इसलिये समझो कि यदि ध्यान न लगे, तो भगवान् के नाम का निरंतर जप ही करना चाहिये।
  सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखे। सुमरिअ नाम रूप बिनु देखे। होत हृदयँ सनेह विसेषें। होत हृदयँ सनेह विसेषें । भगवान् के नाम का सुमरन करना चाहिये, ध्यान के बिना भी तो भगवान् के वहां विशेष प्रेम हो जाता है, प्रेम होने से भगवान् मिल जाते हैं। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ हरि सब जगहमें सम भावसे विराजमान हैं और वे प्रेम से प्रकट होते हैं, शिवजी कहते हैं इस बात को मैं जानता हूँ।

©N S Yadav GoldMine

#mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क

90 View

#भक्ति #Morning  Black {Bolo Ji Radhey Radhey}
हमारी आत्मा का प्रकति के जिस 
गुण का सम्बंध हो, वही गुण उसमें
 बसने लग जाता है, मनोववर्ति 
उसी का आकार धारण कर लेता है,
 इसीलिए  जो मनुष्य सम रह कर
 केवल अपने कर्तव्य कर्म करता है, 
वेर आदि की माया से ऊपर आत्मा 
मैं इस्थिर होता है,  उस अवस्था मे 
उस को पाप स्पर्स नही करता।।

©N S Yadav GoldMine

#Morning {Bolo Ji Radhey Radhey} हमारी आत्मा का प्रकति के जिस गुण का सम्बंध हो, वही गुण उसमें बसने लग जाता है, मनोववर्ति उसी का आकार धारण

135 View

 सहेली...
मजबूरी एक ऐसी अवस्था है..

जहाँ आपको अपनी पसंद का
सब कुछ छोड़ना पड़ता है..
लाला....

©Mahesh Patel

सहेली... अवस्था... लाला...

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