मेरा इस संसार में , हो न किसी से मेल ।
अपने आज विचार ही , करते मुझको फेल ।।
झूठ नही बर्दाश्त है , सुन लो तुम सब आज ।
मेरे जीवन का यही , सबसे गहरा राज ।।
माना संगत ने किया , अक्सर मुझपे घात ।
अब भी लगता है मुझे , वह सब है साक्षात् ।।
सब ही गुरुवर है यहाँ , करता सबका ध्यान ।
भूल क्षमा करना सदा , मैं बालक नादान ।।
अच्छे दिन में है सुना , पीछा करे अतीत ।
कहकर अज्ञानी मुझे , बन जाना फिर मीत ।।
बच्चों जैसा स्वच्छ है , तन-मन अपना आज ।
अब मुझको भी स्थान दो , अपने आज समाज ।।
जीवन जीने की कला , सीख गया रघुनाथ ।
अब है विनती आपसे , रहना मेरे साथ ।।
२२/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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