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ग़ज़ल :- नाम तेरा सदा गुनगुनाता रहा । मन ही मन सोचकर मुस्कराता रहा ।। जब कभी ख्वाब में आप आये मेरे । रात फिर सारी  घूँघट उठाता रहा ।। क्या हुआ मुश्किलों से जो रोटी मिली । प्रेम से तो निवाला खिलाता रहा ।। बद नज़र है जमाने की सारी नज़र । हाथ से उसकी सूरत छुपाता रहा । शब न आयी कभी ज़िंदगी में मेरे । नूर उसका अँधेरा मिटाता रहा ।। देख लो आज भी उसका कोमल हृदय  । मन को मेरे मयूरा बनाता रहा ।। छेड़ती होंगी सखियाँ ये कहकर उसे । नैन कैसे प्रखर कल लडाता रहा ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
नाम तेरा सदा गुनगुनाता रहा ।
मन ही मन सोचकर मुस्कराता रहा ।।

जब कभी ख्वाब में आप आये मेरे ।
रात फिर सारी  घूँघट उठाता रहा ।।

क्या हुआ मुश्किलों से जो रोटी मिली ।
प्रेम से तो निवाला खिलाता रहा ।।

बद नज़र है जमाने की सारी नज़र ।
हाथ से उसकी सूरत छुपाता रहा ।

शब न आयी कभी ज़िंदगी में मेरे ।
नूर उसका अँधेरा मिटाता रहा ।।

देख लो आज भी उसका कोमल हृदय  ।
मन को मेरे मयूरा बनाता रहा ।।

छेड़ती होंगी सखियाँ ये कहकर उसे ।
नैन कैसे प्रखर कल लडाता रहा ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- नाम तेरा सदा गुनगुनाता रहा । मन ही मन सोचकर मुस्कराता रहा ।। जब कभी ख्वाब में आप आये मेरे । रात फिर सारी  घूँघट उठाता रहा ।। क्या ह

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ग़ज़ल :- नाम तेरा सदा गुनगुनाता रहा । मन ही मन सोचकर मुस्कराता रहा ।। जब कभी ख्वाब में आप आये मेरे । रात फिर सारी  घूँघट उठाता रहा ।। क्या हुआ मुश्किलों से जो रोटी मिली । प्रेम से तो निवाला खिलाता रहा ।। बद नज़र है जमाने की सारी नज़र । हाथ से उसकी सूरत छुपाता रहा । शब न आयी कभी ज़िंदगी में मेरे । नूर उसका अँधेरा मिटाता रहा ।। देख लो आज भी उसका कोमल हृदय  । मन को मेरे मयूरा बनाता रहा ।। छेड़ती होंगी सखियाँ ये कहकर उसे । नैन कैसे प्रखर कल लडाता रहा ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
नाम तेरा सदा गुनगुनाता रहा ।
मन ही मन सोचकर मुस्कराता रहा ।।

जब कभी ख्वाब में आप आये मेरे ।
रात फिर सारी  घूँघट उठाता रहा ।।

क्या हुआ मुश्किलों से जो रोटी मिली ।
प्रेम से तो निवाला खिलाता रहा ।।

बद नज़र है जमाने की सारी नज़र ।
हाथ से उसकी सूरत छुपाता रहा ।

शब न आयी कभी ज़िंदगी में मेरे ।
नूर उसका अँधेरा मिटाता रहा ।।

देख लो आज भी उसका कोमल हृदय  ।
मन को मेरे मयूरा बनाता रहा ।।

छेड़ती होंगी सखियाँ ये कहकर उसे ।
नैन कैसे प्रखर कल लडाता रहा ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- नाम तेरा सदा गुनगुनाता रहा । मन ही मन सोचकर मुस्कराता रहा ।। जब कभी ख्वाब में आप आये मेरे । रात फिर सारी  घूँघट उठाता रहा ।। क्या ह

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