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#Bhakti #sakhi  जरूरी नहीं है कि कान्हा ही हमेशा सखी के पास जाए।
 कभी-कभी सखी को भी कान्हा के पास जाकर उसका हाल-बेहाल पूछ लेना चाहिए। 
क्या पता, कान्हा दर्द में हो और उसको सखी की जरूरत हो।

©Shilpa priya Dash

#sakhi ki kanha @Anonymous

333 View

#Quotes #Hope  White Ab "zindagi" mein bas

sahi "sakh's" ka

intezaar hai ☺







.

©Rahul biswas

#Hope Ab zindagi mein bas sahi sakhs ka intezar hai🥲🥺🥺

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#शायरी

# a ri sakhi

135 View

#शायरी  o sajan
aaja ab to leja  mujhko,
na din kte na ratiya,
haal kuch esa h apna bekhbar,
ki tera nam le lekr chedti hai ab sakhiyan..

©Kiran Chaudhary

ki tera nam le lekr chedti hai ab sakhiyan..

126 View

#nojotohindi #kukku2004 #saath #sakhi  जरूरी नहीं सखी कि हर पल तुम्हारे
 पास रहूं .......!
प्रेम और परवाह दूर से भी की 
जाती है.....!!!!!!!!!!
"कान्हा"

©Gyanendra Kumar Pandey

आज का काव्य हलचल आज का शब्द आज का विचार सोशल मीडिया मेरे अल्फ़ाज़ किताब समीक्षा युवाओं की बात वीडियो रचना भेजिए Hindi News › Kavya › Kavita › World Water Day 2024 alok dhanwa ki kavita sirf pani ki rat hai विज्ञापन Hindi Kavita: आलोक धन्वा की कविता- सिर्फ़ पानी की रात है Kavya Desk काव्य डेस्क कविता Kavita आदमी तो आदमी मैं तो पानी के बारे में भी सोचता था कि पानी को भारत में बसना सिखाऊँगा सोचता था पानी होगा आसान पूरब जैसा पुआल के टोप जैसा मोम की रोशनी जैसा गोधूलि में उस पार तक मुश्किल से दिखाई देगा और एक ऐसे देश में भटकाएगा जिसे अभी नक़्शे में आना है ऊँचाई पर जाकर फूल रही लतर जैसे उठती रही हवा में नामालूम गुंबद तक यह मिट्टी के घड़े में भरा रहेगा जब भी मुझे प्यास लगेगी शरद में हो जाएगा और भी पतला साफ़ और धीमा किनारे पर उगे पेड़ की छाया में सोचता था यह सिर्फ़ शरीर के ही काम नहीं आएगा जो रात हमने नाव पर जगकर गुज़ारी क्या उस रात पानी सिर्फ़ शरीर तक आकर लौटता रहा? ©@BeingAdilKhan

#bicycleride  आज का काव्य
 
हलचल
 
आज का शब्द
 
आज का विचार
 
सोशल मीडिया
 
मेरे अल्फ़ाज़
 
किताब समीक्षा
 
युवाओं की बात
 
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Hindi News ›   Kavya ›   Kavita ›   World Water Day 2024 alok dhanwa ki kavita sirf pani ki rat hai
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Hindi Kavita: आलोक धन्वा की कविता- सिर्फ़ पानी की रात है
Kavya Desk काव्य डेस्क
कविता
Kavita

आदमी तो आदमी 
मैं तो पानी के बारे में भी सोचता था 
कि पानी को भारत में बसना सिखाऊँगा 

सोचता था 
पानी होगा आसान 
पूरब जैसा 
पुआल के टोप जैसा 
मोम की रोशनी जैसा 

गोधूलि में उस पार तक 
मुश्किल से दिखाई देगा 
और एक ऐसे देश में भटकाएगा 
जिसे अभी नक़्शे में आना है 

ऊँचाई पर जाकर फूल रही लतर 
जैसे उठती रही हवा में नामालूम गुंबद तक 
यह मिट्टी के घड़े में भरा रहेगा 
जब भी मुझे प्यास लगेगी 

शरद में हो जाएगा और भी पतला 
साफ़ और धीमा 
किनारे पर उगे पेड़ की छाया में 

सोचता था 
यह सिर्फ़ शरीर के ही काम नहीं आएगा 
जो रात हमने नाव पर जगकर गुज़ारी 
क्या उस रात पानी 
सिर्फ़ शरीर तक आकर लौटता रहा?

©@BeingAdilKhan

#bicycleride @neelu @Preeti @Anshu writer Meri Sakhi Shri Radha Rani @R Ojha

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#Bhakti #sakhi  जरूरी नहीं है कि कान्हा ही हमेशा सखी के पास जाए।
 कभी-कभी सखी को भी कान्हा के पास जाकर उसका हाल-बेहाल पूछ लेना चाहिए। 
क्या पता, कान्हा दर्द में हो और उसको सखी की जरूरत हो।

©Shilpa priya Dash

#sakhi ki kanha @Anonymous

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#Quotes #Hope  White Ab "zindagi" mein bas

sahi "sakh's" ka

intezaar hai ☺







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©Rahul biswas

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#शायरी

# a ri sakhi

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#शायरी  o sajan
aaja ab to leja  mujhko,
na din kte na ratiya,
haal kuch esa h apna bekhbar,
ki tera nam le lekr chedti hai ab sakhiyan..

©Kiran Chaudhary

ki tera nam le lekr chedti hai ab sakhiyan..

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#nojotohindi #kukku2004 #saath #sakhi  जरूरी नहीं सखी कि हर पल तुम्हारे
 पास रहूं .......!
प्रेम और परवाह दूर से भी की 
जाती है.....!!!!!!!!!!
"कान्हा"

©Gyanendra Kumar Pandey

आज का काव्य हलचल आज का शब्द आज का विचार सोशल मीडिया मेरे अल्फ़ाज़ किताब समीक्षा युवाओं की बात वीडियो रचना भेजिए Hindi News › Kavya › Kavita › World Water Day 2024 alok dhanwa ki kavita sirf pani ki rat hai विज्ञापन Hindi Kavita: आलोक धन्वा की कविता- सिर्फ़ पानी की रात है Kavya Desk काव्य डेस्क कविता Kavita आदमी तो आदमी मैं तो पानी के बारे में भी सोचता था कि पानी को भारत में बसना सिखाऊँगा सोचता था पानी होगा आसान पूरब जैसा पुआल के टोप जैसा मोम की रोशनी जैसा गोधूलि में उस पार तक मुश्किल से दिखाई देगा और एक ऐसे देश में भटकाएगा जिसे अभी नक़्शे में आना है ऊँचाई पर जाकर फूल रही लतर जैसे उठती रही हवा में नामालूम गुंबद तक यह मिट्टी के घड़े में भरा रहेगा जब भी मुझे प्यास लगेगी शरद में हो जाएगा और भी पतला साफ़ और धीमा किनारे पर उगे पेड़ की छाया में सोचता था यह सिर्फ़ शरीर के ही काम नहीं आएगा जो रात हमने नाव पर जगकर गुज़ारी क्या उस रात पानी सिर्फ़ शरीर तक आकर लौटता रहा? ©@BeingAdilKhan

#bicycleride  आज का काव्य
 
हलचल
 
आज का शब्द
 
आज का विचार
 
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मेरे अल्फ़ाज़
 
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कविता
Kavita

आदमी तो आदमी 
मैं तो पानी के बारे में भी सोचता था 
कि पानी को भारत में बसना सिखाऊँगा 

सोचता था 
पानी होगा आसान 
पूरब जैसा 
पुआल के टोप जैसा 
मोम की रोशनी जैसा 

गोधूलि में उस पार तक 
मुश्किल से दिखाई देगा 
और एक ऐसे देश में भटकाएगा 
जिसे अभी नक़्शे में आना है 

ऊँचाई पर जाकर फूल रही लतर 
जैसे उठती रही हवा में नामालूम गुंबद तक 
यह मिट्टी के घड़े में भरा रहेगा 
जब भी मुझे प्यास लगेगी 

शरद में हो जाएगा और भी पतला 
साफ़ और धीमा 
किनारे पर उगे पेड़ की छाया में 

सोचता था 
यह सिर्फ़ शरीर के ही काम नहीं आएगा 
जो रात हमने नाव पर जगकर गुज़ारी 
क्या उस रात पानी 
सिर्फ़ शरीर तक आकर लौटता रहा?

©@BeingAdilKhan

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