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दोहा :- अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।। रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान । अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।। कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात । रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।। रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल । एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।। अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात । समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।। नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज । करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।। उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण । रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।। जो कुछ जीवन में मिला ,  बाबा तेरा प्यार । व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।। हृदय स्मृतियों में चले ,  बचपन के वह काल । हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।। जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार । कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।। जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल । एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।। बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल । कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात ।
देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।।
रात अमावस की बड़ी , होती काली रात ।
सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।।
रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान ।
अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।।
कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात ।
रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।।
रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल ।
एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।।
अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात ।
समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।।
नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज ।
करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।।
उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण ।
रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।।
जो कुछ जीवन में मिला ,  बाबा तेरा प्यार ।
व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।।
हृदय स्मृतियों में चले ,  बचपन के वह काल ।
हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।।
जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार ।
कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।।
जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल ।
एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।।
बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल ।
कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती

14 Love

#मनपसंद #gratitude #Blessed

सोते जागते ,रुकी होऊं या भागते मुझे कुछ कहना होता है ,कभी शब्दों से कहती हूं और कभी आंखों से बस,अपने एहसासों को पहले पन्नो पर, फिर ऐसे जहां

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दोहा :- अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।। रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान । अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।। कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात । रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।। रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल । एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।। अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात । समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।। नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज । करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।। उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण । रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।। जो कुछ जीवन में मिला ,  बाबा तेरा प्यार । व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।। हृदय स्मृतियों में चले ,  बचपन के वह काल । हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।। जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार । कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।। जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल । एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।। बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल । कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात ।
देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।।
रात अमावस की बड़ी , होती काली रात ।
सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।।
रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान ।
अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।।
कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात ।
रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।।
रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल ।
एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।।
अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात ।
समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।।
नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज ।
करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।।
उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण ।
रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।।
जो कुछ जीवन में मिला ,  बाबा तेरा प्यार ।
व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।।
हृदय स्मृतियों में चले ,  बचपन के वह काल ।
हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।।
जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार ।
कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।।
जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल ।
एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।।
बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल ।
कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती

14 Love

#मनपसंद #gratitude #Blessed

सोते जागते ,रुकी होऊं या भागते मुझे कुछ कहना होता है ,कभी शब्दों से कहती हूं और कभी आंखों से बस,अपने एहसासों को पहले पन्नो पर, फिर ऐसे जहां

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