चेहरा तिरा इक किताब सा है.... मिरी नज़रों में जो | हिंदी कविता

"चेहरा तिरा इक किताब सा है.... मिरी नज़रों में जो बस गया ख्वाब सा है.... ................. ❤.................... तिरी आँखों में लिखी जो ग़ज़ल है, उसका नशा जैसे कोई शराब सा है.... ................. ❤.................... मुस्कान में उनकी जो राज छिपा है, खिला वो कांटों में कोई गुलाब सा है.... ................. ❤.................... उनका चलना और इन हवाओं की सांसों का थमना, रफ़्तार में भी उनके मिला इक रूबाब सा है.... ................. ❤.................... जमाने की उलझनों में उलझा एक सवाल हूँ मैं वो मिरी सारी उलझनों के सभी जवाब सा है.... ................. ❤.................... दुनिया की इस भीड़ में हमारा मिलना ऐसा जैसे मिलना काफ़िर को रब सा है.... ................. ❤....................                                              आरती सिरसाट ©Aarti Sirsat"

 चेहरा तिरा इक किताब सा है.... 
मिरी नज़रों में जो बस गया ख्वाब सा है....
................. ❤....................

तिरी आँखों में लिखी जो ग़ज़ल है, 
उसका नशा जैसे कोई शराब सा है.... 
................. ❤.................... 

मुस्कान में उनकी जो राज छिपा है, 
खिला वो कांटों में कोई गुलाब सा है.... 
................. ❤.................... 

उनका चलना और इन हवाओं की सांसों का थमना, 
रफ़्तार में भी उनके मिला इक रूबाब सा है.... 
................. ❤.................... 

जमाने की उलझनों में उलझा एक सवाल हूँ मैं
वो मिरी सारी उलझनों के सभी जवाब सा है.... 
................. ❤.................... 

दुनिया की इस भीड़ में हमारा मिलना
ऐसा जैसे मिलना काफ़िर को रब सा है.... 
................. ❤.................... 
                       
                      आरती सिरसाट

©Aarti Sirsat

चेहरा तिरा इक किताब सा है.... मिरी नज़रों में जो बस गया ख्वाब सा है.... ................. ❤.................... तिरी आँखों में लिखी जो ग़ज़ल है, उसका नशा जैसे कोई शराब सा है.... ................. ❤.................... मुस्कान में उनकी जो राज छिपा है, खिला वो कांटों में कोई गुलाब सा है.... ................. ❤.................... उनका चलना और इन हवाओं की सांसों का थमना, रफ़्तार में भी उनके मिला इक रूबाब सा है.... ................. ❤.................... जमाने की उलझनों में उलझा एक सवाल हूँ मैं वो मिरी सारी उलझनों के सभी जवाब सा है.... ................. ❤.................... दुनिया की इस भीड़ में हमारा मिलना ऐसा जैसे मिलना काफ़िर को रब सा है.... ................. ❤....................                                              आरती सिरसाट ©Aarti Sirsat

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