चेहरा तिरा इक किताब सा है....
मिरी नज़रों में जो बस गया ख्वाब सा है....
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तिरी आँखों में लिखी जो ग़ज़ल है,
उसका नशा जैसे कोई शराब सा है....
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मुस्कान में उनकी जो राज छिपा है,
खिला वो कांटों में कोई गुलाब सा है....
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उनका चलना और इन हवाओं की सांसों का थमना,
रफ़्तार में भी उनके मिला इक रूबाब सा है....
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जमाने की उलझनों में उलझा एक सवाल हूँ मैं
वो मिरी सारी उलझनों के सभी जवाब सा है....
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दुनिया की इस भीड़ में हमारा मिलना
ऐसा जैसे मिलना काफ़िर को रब सा है....
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आरती सिरसाट
©Aarti Sirsat
#Love
#lovetaj