सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ, सुबह की पहली ल | हिंदी कविता

"सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ, सुबह की पहली लाली पड़ने पर, सकुचाने और लजाने की चेष्टा में तुम्हारे ही मुखड़े की माधुर्य की तरह, और भी खिल जाती है, और इस तरह से ओस की बूँदों पर कलियों का प्रेम, छिपने के बजाए और भी जाहिर हो जाता है। इसी तरह क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिलती मुस्कान से, मुझपर तुम्हारा प्रेम और भी जाहिर नहीं होता? , ©Vikram Kumar Anujaya"

 सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ,
सुबह की पहली लाली पड़ने पर,
सकुचाने और लजाने की चेष्टा में
तुम्हारे ही मुखड़े की माधुर्य की तरह,
और भी खिल जाती है,
और इस तरह से ओस की बूँदों पर 
कलियों का प्रेम,
छिपने के बजाए और भी जाहिर हो जाता है।
इसी तरह क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर
खिलती मुस्कान से,
मुझपर तुम्हारा प्रेम और भी जाहिर नहीं होता? ,

©Vikram Kumar Anujaya

सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ, सुबह की पहली लाली पड़ने पर, सकुचाने और लजाने की चेष्टा में तुम्हारे ही मुखड़े की माधुर्य की तरह, और भी खिल जाती है, और इस तरह से ओस की बूँदों पर कलियों का प्रेम, छिपने के बजाए और भी जाहिर हो जाता है। इसी तरह क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिलती मुस्कान से, मुझपर तुम्हारा प्रेम और भी जाहिर नहीं होता? , ©Vikram Kumar Anujaya

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