Vikram Kumar Anujaya

Vikram Kumar Anujaya Lives in Sitamarhi, Bihar, India

Passionate of writing Poetry, story and contemporary content

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ओह मुझपर मँडराते बादल! मेरे मन को मथते अरमानों को ले लो, और बदले में अपनी जल-राशि बूँदों के रूप में दे दो, और चले जाओ वहाँ, जहाँ मेरी प्रेयसी बैठी है, उसे घेर लेना चारो ओर से, और बरसा देना उसपर, मेरे मन के सारे अरमान को, और बदले में उसकी आँखों से, सारा अश्रु-जल ले लेना, और उससे कहना, तुम्हें सुनने को वह उतना ही आकुल है, जितना आकुल हूँ मैं धरती पर बरसने को। ©Vikram Kumar Anujaya

#कविता #lightning  ओह मुझपर मँडराते बादल!
मेरे मन को मथते अरमानों को ले लो,
और बदले में अपनी जल-राशि बूँदों के रूप में दे दो,
और चले जाओ वहाँ,
जहाँ मेरी प्रेयसी बैठी है,
उसे घेर लेना चारो ओर से,
और बरसा देना उसपर,
मेरे मन के सारे अरमान को,
और बदले में उसकी आँखों से,
सारा अश्रु-जल ले लेना,
और उससे कहना, 
तुम्हें सुनने को वह उतना ही आकुल है,
जितना आकुल हूँ मैं धरती पर बरसने को।

©Vikram Kumar Anujaya

#lightning

14 Love

सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ, सुबह की पहली लाली द्वारा पकड़ लिए जाने पर, सकुचाने और लजाने की चेष्टा में, बिल्कुल तुम्हारे मुखड़े की माधुर्य की तरह खिल जाती है। और इस तरह ओस की बूँदों पर कलियों का प्रेम छिपने के बजाए, और भी जाहिर हो जाता है। ठीक इसी तरह, क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिले मुस्कान से, मुझपर तुम्हारा प्रेम जाहिर नहीं होता? ©Vikram Kumar Anujaya

#कविता #Path  सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ,
सुबह की पहली लाली द्वारा पकड़ लिए जाने पर,
सकुचाने और लजाने की चेष्टा में,
बिल्कुल तुम्हारे मुखड़े की माधुर्य की तरह खिल जाती है।
और इस तरह ओस की बूँदों पर
कलियों का प्रेम छिपने के बजाए,
और भी जाहिर हो जाता है।
ठीक इसी तरह,
क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिले मुस्कान से, 
मुझपर तुम्हारा प्रेम जाहिर नहीं होता?

©Vikram Kumar Anujaya

#Path

13 Love

सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ, सुबह की पहली लाली पड़ने पर, सकुचाने और लजाने की चेष्टा में तुम्हारे ही मुखड़े की माधुर्य की तरह, और भी खिल जाती है, और इस तरह से ओस की बूँदों पर कलियों का प्रेम, छिपने के बजाए और भी जाहिर हो जाता है। इसी तरह क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिलती मुस्कान से, मुझपर तुम्हारा प्रेम और भी जाहिर नहीं होता? , ©Vikram Kumar Anujaya

#hibiscussabdariffa #कविता  सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ,
सुबह की पहली लाली पड़ने पर,
सकुचाने और लजाने की चेष्टा में
तुम्हारे ही मुखड़े की माधुर्य की तरह,
और भी खिल जाती है,
और इस तरह से ओस की बूँदों पर 
कलियों का प्रेम,
छिपने के बजाए और भी जाहिर हो जाता है।
इसी तरह क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर
खिलती मुस्कान से,
मुझपर तुम्हारा प्रेम और भी जाहिर नहीं होता? ,

©Vikram Kumar Anujaya

White सुनो तुम सो जाओ, मुझे नींद में मुस्कुराते हुए, तुम्हारे माधुर्य मुखड़े को देखना है। मुझे यह देखना है कि जब तुम गहरी नींद में होती हो, और आहिस्ते पलकों के दरवाजे से, मैं तुम्हारे सपनों में आता हूँ, तो तुम कैसा मेहसूस करती हो! अपने ख्वाबों में मुझे पाकर तुम कितनी सुकून मेहसूस करती हो, तुम्हारे मुखड़े पर चौड़ी होती मुस्कान में और तुम्हारे मुख पर खेलते भाव को मैं पढ़ना चाहता हूँ, कि अपने सपनों में, तुम मेरे साथ कितना सहज महसूस करती हो। ©Vikram Kumar Anujaya

#कविता #good_night  White सुनो तुम सो जाओ,
मुझे नींद में मुस्कुराते हुए,
तुम्हारे माधुर्य मुखड़े को देखना है।
मुझे यह देखना है कि
जब तुम गहरी नींद में होती हो,
और आहिस्ते पलकों के दरवाजे से,
मैं तुम्हारे सपनों में आता हूँ,
तो तुम कैसा मेहसूस करती हो!

अपने ख्वाबों में मुझे पाकर 
तुम कितनी सुकून मेहसूस करती हो,
तुम्हारे मुखड़े पर चौड़ी होती मुस्कान में
और तुम्हारे मुख पर खेलते भाव को 
मैं पढ़ना चाहता हूँ, कि अपने सपनों में,
तुम मेरे साथ कितना सहज महसूस करती हो।

©Vikram Kumar Anujaya

#good_night

11 Love

White किसी से दो पल का आत्मीय संवाद, हृदय के बोझ को कितना कम कर देता है।" मैं सोचता हूँ, नदियाँ समंदर की ओर क्यों भागती है, हवाएँ क्यों बेचैन और गतिमान है, ये धरती, ग्रह, नक्षत्र, सबके-सब घूमते क्यों हैं? चंद्रमा अनंत काल से यात्रा पर क्यों है, और ये समंदर उद्वेलित और दग्ध क्यों रहता है? क्या ये भी हमारी तरह आत्मीय संवाद के लिए किसी की तलाश में है? ©Vikram Kumar Anujaya

#कविता #moon_day  White किसी से दो पल का आत्मीय संवाद,
हृदय के बोझ को कितना कम कर देता है।"
मैं सोचता हूँ, 
नदियाँ समंदर की ओर क्यों भागती है,
हवाएँ क्यों बेचैन और गतिमान है,
ये धरती, ग्रह, नक्षत्र,
सबके-सब घूमते क्यों हैं?
चंद्रमा अनंत काल से यात्रा पर क्यों है,
और ये समंदर उद्वेलित और दग्ध क्यों रहता है?
क्या ये भी हमारी तरह आत्मीय संवाद
के लिए किसी की तलाश में है?

©Vikram Kumar Anujaya

#moon_day कविता कोश हिंदी कविता कविता प्रेम कविता हिंदी कविता

16 Love

White "कुछ चीजें परिबद्ध नहीं की जा सकती। उसे केवल मेहसूस किया जा सकता है, जैसे संघर्ष के दिनों में हमारे कंधे पर किसी के हाथ का मानवीय स्पर्श; जैसे हमारी खुशियों के लिए किसी के हृदय में स्पंदित प्रार्थनाएँ, जैसे हमारे सबसे बुरे समय में किसी का गले लगाना; जैसे हमारे सपनों तक पहुँचने में किसी का दीया बनकर, हमारे मार्ग के अंधेरों को मिटाना।" ©Vikram Kumar Anujaya

#कविता #sad_shayari  White "कुछ चीजें परिबद्ध नहीं की जा सकती।
 उसे केवल मेहसूस किया जा सकता है,
 जैसे संघर्ष के दिनों में
 हमारे कंधे पर किसी के हाथ का मानवीय स्पर्श;
 जैसे हमारी खुशियों के लिए
 किसी के हृदय में स्पंदित प्रार्थनाएँ,
 जैसे हमारे सबसे बुरे समय में
 किसी का गले लगाना;
 जैसे हमारे सपनों तक पहुँचने में
 किसी का दीया बनकर,
 हमारे मार्ग के अंधेरों को मिटाना।"

©Vikram Kumar Anujaya

#sad_shayari

11 Love

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