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डूबते को मिला हो जैसे किनारा फिर से
याद आया मुझे वो शख़्स दुबारा फिर से
सारे जुगनू ही चले आये हैं महफ़िल में मिरी
चांदनी रात में टूटा कोई तारा फिर से
मुझसे हिज्रां की ये रातें नहीं कटती हमदम
साल इक और बिना तेरे गुज़ारा फिर से
क्यों किसी पे ही बिना बात के दिल आता है
इश्क़ में हो गया दिल मेरा अवारा फिर से
सब अचानक से मिरे पे हो रहें हैं फिदा क्यों
मैंने आईने में ख़ुद को ही निहारा फिर से
लौट कर आया "सफ़र" से मैं तो तेरी ख़ातिर
ख़तरा हो जब कभी तू देना इशारा फिर से
ग़ज़ल 25/2022
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ᕼα𝐲Ã卂t uSM𝓐Ⓝ
ashish malik
Pratibha Sharma