एक था पिंजरा
अपने आप में अलग, अनोखा
उसमे नहीं थी सलाखें
बस थे तो सिर्फ दरवाज़े
जो रहते थे हमेशा खुले ।
और उनमें से निकल कर
उड़ा जा सकता था कभी भी
उन्मुक्त आकाश में ।
पर उस पिंजरे का पंछी
कभी नहीं उड़ा ।
उस पंछी को किया था क़ैद
उसकी सोच ने ।
कभी कभी लगता है
हम भी किसी ऐसे ही पिंजरे के पंछी हैं ।।
©Jain Saroj
#पिंजरा