नवीन रुत की घटा छिड़ी सब ग्वाले बाले नाच रहे बंसी | हिंदी शायरी

"नवीन रुत की घटा छिड़ी सब ग्वाले बाले नाच रहे बंसी से मधुर सी तान छिड़ी सब कृष्ण के रंग भीग रहे बारिश की बूंदे तितर बितर धरती को गले लगाती है और भीनी भीनी खुशबू से सारे जग को महकाती है ऐसा मनोरम दृश्य देख नयन हर्षित हो जाते है भरत भूमि पर जन्म लिया ये सोच सोच इतराते है ये सोच सोच इतराते है ©Aashish Vyas"

 नवीन रुत की घटा छिड़ी
सब ग्वाले बाले नाच रहे
बंसी से मधुर सी तान छिड़ी
सब कृष्ण के रंग भीग रहे
बारिश की बूंदे तितर बितर
धरती को गले लगाती है
और भीनी भीनी खुशबू से
सारे जग को महकाती है
ऐसा मनोरम दृश्य देख 
नयन हर्षित हो जाते है
भरत भूमि पर जन्म लिया
ये सोच सोच इतराते है
ये सोच सोच इतराते है

©Aashish Vyas

नवीन रुत की घटा छिड़ी सब ग्वाले बाले नाच रहे बंसी से मधुर सी तान छिड़ी सब कृष्ण के रंग भीग रहे बारिश की बूंदे तितर बितर धरती को गले लगाती है और भीनी भीनी खुशबू से सारे जग को महकाती है ऐसा मनोरम दृश्य देख नयन हर्षित हो जाते है भरत भूमि पर जन्म लिया ये सोच सोच इतराते है ये सोच सोच इतराते है ©Aashish Vyas

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