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राह में चलना इतना भी दुश्वार नही था
नजर में उनका इतना इंतजार नही था
ढूंढ ली है हमने एक अनजान बस्ती
इश्क का जहां कोई कारोबार नही था
पलट कर देखा भी नही उसने हमको
कहो फिर मुहब्बत का इजहार नही था
रात भर गुजरी मेरी रात उसके पहलू में
क्या कहा ये मुहब्बत का इकरार नही था
तोड़ दिया अपना वादा किसी मजबूरी में
हमको भी संजय उस पर एतबार नहीं था
©संजय श्रीवास्तव
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