बिना कहे कुछ रह जाते हो, तुम अब भी याद आते हो, | हिंदी शायरी

"बिना कहे कुछ रह जाते हो, तुम अब भी याद आते हो, पलभर अलग न रहने वाले, मिलने से भी कतराते हो, एक नौका में बैठे फिर भी, किस ख़याल में बह जाते हो, करली अख्तियार ख़ामुशी, बात न अपनी कह पाते हो, अंदर अंदर घुटते रहकर, बे-मतलब ही बलखाते हो, दुनिया से बेख़बर आजकल, ख़ुद पे कितना इतराते हो, दर्द ज़ुदाई का तुम गुंजन, कैसे इतना सह पाते हो, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra"

 बिना कहे कुछ रह जाते हो, 
तुम अब भी  याद  आते हो,

पलभर अलग न रहने वाले, 
मिलने  से  भी  कतराते हो,

एक  नौका में  बैठे फिर भी, 
किस ख़याल में बह जाते हो,

करली  अख्तियार  ख़ामुशी,
बात न अपनी  कह पाते हो, 

अंदर  अंदर   घुटते  रहकर,
बे-मतलब  ही  बलखाते हो,

दुनिया से बेख़बर आजकल, 
ख़ुद  पे  कितना  इतराते हो,

दर्द  ज़ुदाई  का  तुम  गुंजन,
कैसे   इतना  सह   पाते  हो,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

बिना कहे कुछ रह जाते हो, तुम अब भी याद आते हो, पलभर अलग न रहने वाले, मिलने से भी कतराते हो, एक नौका में बैठे फिर भी, किस ख़याल में बह जाते हो, करली अख्तियार ख़ामुशी, बात न अपनी कह पाते हो, अंदर अंदर घुटते रहकर, बे-मतलब ही बलखाते हो, दुनिया से बेख़बर आजकल, ख़ुद पे कितना इतराते हो, दर्द ज़ुदाई का तुम गुंजन, कैसे इतना सह पाते हो, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#याद आते हो#

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