धार्मिक कट्टरता 🙍 जब धर्म मस्तिष्क पे चढ़ जाता है | हिंदी कविता

"धार्मिक कट्टरता 🙍 जब धर्म मस्तिष्क पे चढ़ जाता हैं, बुद्धि तो मानों मर जाता हैं, सड़ जाता है, जिह्वा उसका जैसे नागिन का विष पड़ जाता है, बूझ जाती हैं लौ विश्वास की और घोर अंधेरा छाता है, अंधेरी सी इस दुनियां में कोहराम नज़र आता है, खून की इन चमकती छीटों को देखो सब लाल नज़र आता है, मगर रुको कोई दलित,हिंदू तो कोई मुसलमान नजर आता है, रास्ते से हटो कोई आते नज़र आता हैं, हां,हां ये तो 9 साल के बच्चे का जनाजा नज़र आता हैं, मटके से पानी पी न सका ऐसा नज़र आता हैं, ये चमकते जुगनू अंधेरी में क्या इशारे देता हैं, ज़रा साथ चलो इसके ये अद्भुत नजारे देता हैं, मगर ये अब मिटता नज़र आता हैं, अरे! नही नही उपर तो देखो बाबा साहेब का प्रकाश नजर आता हैं, अब सब साफ नजर आता है सब इंसान नजर आता है। लेखक __ अमित कुमार💙 ©AMIT KUMAR KASHYAP"

 धार्मिक कट्टरता 🙍

जब धर्म मस्तिष्क पे चढ़ जाता हैं,
बुद्धि तो मानों मर जाता हैं,

सड़ जाता है, जिह्वा उसका जैसे नागिन का विष पड़ जाता है,
बूझ जाती हैं लौ  विश्वास की और घोर अंधेरा छाता है,

अंधेरी सी इस दुनियां में कोहराम नज़र आता है,
खून की इन चमकती छीटों को देखो सब लाल नज़र आता है,
मगर रुको कोई दलित,हिंदू तो कोई मुसलमान नजर आता है,
रास्ते से हटो कोई आते नज़र आता हैं,

हां,हां ये तो 9 साल के बच्चे का जनाजा नज़र आता हैं,
मटके से पानी पी न सका ऐसा नज़र आता हैं,

ये चमकते जुगनू अंधेरी में क्या इशारे देता हैं,
ज़रा साथ चलो इसके ये अद्भुत नजारे देता हैं,

मगर ये अब मिटता नज़र आता हैं,
अरे! नही नही उपर तो देखो बाबा साहेब का प्रकाश नजर आता हैं, 
अब सब साफ नजर आता है सब इंसान नजर आता है।

लेखक __ अमित कुमार💙

©AMIT KUMAR KASHYAP

धार्मिक कट्टरता 🙍 जब धर्म मस्तिष्क पे चढ़ जाता हैं, बुद्धि तो मानों मर जाता हैं, सड़ जाता है, जिह्वा उसका जैसे नागिन का विष पड़ जाता है, बूझ जाती हैं लौ विश्वास की और घोर अंधेरा छाता है, अंधेरी सी इस दुनियां में कोहराम नज़र आता है, खून की इन चमकती छीटों को देखो सब लाल नज़र आता है, मगर रुको कोई दलित,हिंदू तो कोई मुसलमान नजर आता है, रास्ते से हटो कोई आते नज़र आता हैं, हां,हां ये तो 9 साल के बच्चे का जनाजा नज़र आता हैं, मटके से पानी पी न सका ऐसा नज़र आता हैं, ये चमकते जुगनू अंधेरी में क्या इशारे देता हैं, ज़रा साथ चलो इसके ये अद्भुत नजारे देता हैं, मगर ये अब मिटता नज़र आता हैं, अरे! नही नही उपर तो देखो बाबा साहेब का प्रकाश नजर आता हैं, अब सब साफ नजर आता है सब इंसान नजर आता है। लेखक __ अमित कुमार💙 ©AMIT KUMAR KASHYAP

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