मैं शहर हूं, ऊंची ऊंची इमारतों में, गगन चूमता एक प | हिंदी कविता

"मैं शहर हूं, ऊंची ऊंची इमारतों में, गगन चूमता एक पहर हूं, मैं शहर हूं।। धुएं,शोर गुल और विडंबना से बना हूं, सच का अता पता नहीं, कारीगरों से बना एक झूठ हूं, मैं शहर हूं।। चकाचौंध से भरा हूं, उम्मीदों पे खड़ा हूं, बेरंग जिंदगी को छुपाकर, रंगीन पर्दों पे सजा हूं, मैं शहर हूं।। दुख छुपाकर अपना, झूठी मुस्कान से मुस्कुरा रहा हूं, छोड़कर खेत खलिहान, मैं सीमेंट की सड़कों पे खड़ा हूं, मैं शहर हूं।। ©Geetanjali parida"

 मैं शहर हूं,
ऊंची ऊंची इमारतों में,
गगन चूमता एक पहर हूं,
मैं शहर हूं।।

धुएं,शोर गुल और विडंबना से बना हूं,
सच का अता पता नहीं,
कारीगरों से बना एक झूठ हूं,
मैं शहर हूं।।

चकाचौंध से भरा हूं,
उम्मीदों पे खड़ा हूं,
बेरंग जिंदगी को छुपाकर,
रंगीन पर्दों पे सजा हूं,
मैं शहर हूं।।

दुख छुपाकर अपना,
झूठी मुस्कान से मुस्कुरा रहा हूं,
छोड़कर खेत खलिहान,
मैं सीमेंट की सड़कों पे खड़ा हूं,
मैं शहर हूं।।

©Geetanjali parida

मैं शहर हूं, ऊंची ऊंची इमारतों में, गगन चूमता एक पहर हूं, मैं शहर हूं।। धुएं,शोर गुल और विडंबना से बना हूं, सच का अता पता नहीं, कारीगरों से बना एक झूठ हूं, मैं शहर हूं।। चकाचौंध से भरा हूं, उम्मीदों पे खड़ा हूं, बेरंग जिंदगी को छुपाकर, रंगीन पर्दों पे सजा हूं, मैं शहर हूं।। दुख छुपाकर अपना, झूठी मुस्कान से मुस्कुरा रहा हूं, छोड़कर खेत खलिहान, मैं सीमेंट की सड़कों पे खड़ा हूं, मैं शहर हूं।। ©Geetanjali parida

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