मेरी कलम" "कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि ज | हिं

""मेरी कलम" "कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि जाऊं तुझ पर बारंबार, हृदय पटल पर जब सब सूना दिखता है, फीके पड़ जाते हैं रंग हजार, महकाती हो "कलम" तुम ही मेरे जीवन को बनके मेरी यार ।। टूट कर मोती बिखर जाता है जब इश्क मेरा, दिल को छूते घाव हजार, बन कर आती हो "कलम" तुम मेरा निर्मल प्यार ।। छोड़ देता है जब मुझको एकांत में ये नकावी जमाना,खुद को पाती हूं बेबस लाचार, मालिक बन देती हो "कलम" तुम मुझको अपना समय उधार ।। उनसे जब कुछ कहने से कतराती हूँ,चाह कर भी कुछ अभिव्यक्त नहीं कर पाती हूं, पन्नों पर लिखवा देती हो" कलम" तुम मेरे भाव अपार ।। गमों की माला पोते पोते जब मैं थक जाती हूं, भाव समाहित हो जाता है बस अब जीवन है बेकार, निराशाओं में 'कलम" तुम ही करती हो आशाओं का संचार ।। कभी लिखती पन्नों पर रानी लक्ष्मीबाई की कुर्बानी, कभी कृष्ण थी मीरा की दीवानी, कभी हीर रांझा शाहजहां मुमताज की प्रेम कहानी, कभी लिखवा देती हो "कलम" मेरे जीवन का सार ।। "कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि जाऊ तुझ पर बारंबार ।। "पारुल✍️ ©Parul Mehrotra"

 "मेरी कलम"
"कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि जाऊं तुझ पर बारंबार,

 हृदय पटल पर जब सब सूना दिखता है, फीके पड़ जाते हैं रंग हजार, 
महकाती हो "कलम" तुम ही मेरे जीवन को बनके मेरी यार ।।

टूट कर मोती बिखर जाता है जब इश्क मेरा, दिल को छूते घाव हजार,
 बन कर आती हो "कलम" तुम मेरा निर्मल प्यार ।।

छोड़ देता है जब मुझको एकांत में ये नकावी जमाना,खुद को पाती हूं बेबस लाचार,
मालिक बन देती हो "कलम" तुम मुझको अपना समय उधार ।।

उनसे जब कुछ कहने से कतराती हूँ,चाह कर भी कुछ अभिव्यक्त नहीं कर पाती हूं,
पन्नों पर लिखवा देती हो" कलम" तुम मेरे भाव अपार ।।

गमों की माला पोते पोते जब मैं थक जाती हूं,
भाव समाहित हो जाता है बस अब जीवन है बेकार,
निराशाओं में 'कलम" तुम ही करती हो आशाओं का संचार ।।

कभी लिखती पन्नों पर रानी लक्ष्मीबाई की कुर्बानी, 
कभी कृष्ण थी मीरा की दीवानी, 
कभी हीर रांझा शाहजहां मुमताज की प्रेम कहानी,
कभी लिखवा देती हो "कलम" मेरे जीवन का सार ।।

"कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि जाऊ तुझ पर बारंबार ।।
                      "पारुल✍️

©Parul Mehrotra

"मेरी कलम" "कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि जाऊं तुझ पर बारंबार, हृदय पटल पर जब सब सूना दिखता है, फीके पड़ जाते हैं रंग हजार, महकाती हो "कलम" तुम ही मेरे जीवन को बनके मेरी यार ।। टूट कर मोती बिखर जाता है जब इश्क मेरा, दिल को छूते घाव हजार, बन कर आती हो "कलम" तुम मेरा निर्मल प्यार ।। छोड़ देता है जब मुझको एकांत में ये नकावी जमाना,खुद को पाती हूं बेबस लाचार, मालिक बन देती हो "कलम" तुम मुझको अपना समय उधार ।। उनसे जब कुछ कहने से कतराती हूँ,चाह कर भी कुछ अभिव्यक्त नहीं कर पाती हूं, पन्नों पर लिखवा देती हो" कलम" तुम मेरे भाव अपार ।। गमों की माला पोते पोते जब मैं थक जाती हूं, भाव समाहित हो जाता है बस अब जीवन है बेकार, निराशाओं में 'कलम" तुम ही करती हो आशाओं का संचार ।। कभी लिखती पन्नों पर रानी लक्ष्मीबाई की कुर्बानी, कभी कृष्ण थी मीरा की दीवानी, कभी हीर रांझा शाहजहां मुमताज की प्रेम कहानी, कभी लिखवा देती हो "कलम" मेरे जीवन का सार ।। "कलम" तेरा मुझ पर बड़ा उपकार, बलि बलि जाऊ तुझ पर बारंबार ।। "पारुल✍️ ©Parul Mehrotra

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