White हमने उनके हिस्से मढ़ दीं हैं अनेक जिम्मेदारिय | हिंदी विचार

"White हमने उनके हिस्से मढ़ दीं हैं अनेक जिम्मेदारियाँ। हमने उनके कमजोर पड़ने को असंभव बताया।। हमने उनकी आँखों पर आने वाले आँसुओं को देखा आश्चर्यों की तरह हमेशा। हमने उनपे थोप सा दिया कठोर, विशाल बरगद हो जाना।। हमने पिताओं की ममता से ज्यादा तवज्जो उनके अविचल, अजेय, आराध्य होने को दिया। और इन सारे प्रतिमानों के तले दबते, पिसते रहें वो पिता, जिनके मन की उथल-पुथल आंसुओं के रास्ते बहने का रास्ता नहीं खोज पातीं।। जिनके हिस्से की कमजोरियाँ हमारी बाहों में जगह नहीं पातीं। और जिनके बरगद होने की दुश्वारियों में फूल खिलना अवांछित है।। पिता योद्धा होते हैं बेशक! पर बच्चों की बाहों में टूटकर जार-जार रोना उनकी भी ख्वाहिश होती है।। कि पिताओं में भी कहीं, एक माँ छिपी होती है। पर पिताओं के हिस्सों में नहीं होता माँ हो जाना।। -✍️अभिषेक यादव ©Abhishek Yadav"

 White हमने उनके हिस्से मढ़ दीं हैं अनेक जिम्मेदारियाँ।
हमने उनके कमजोर पड़ने को असंभव बताया।।

हमने उनकी आँखों पर आने वाले आँसुओं को देखा आश्चर्यों की तरह हमेशा।
हमने उनपे थोप सा दिया कठोर, विशाल बरगद हो जाना।।

हमने पिताओं की ममता से ज्यादा तवज्जो
उनके अविचल, अजेय, आराध्य होने को दिया।

और इन सारे प्रतिमानों के तले दबते, पिसते रहें वो पिता,
जिनके मन की उथल-पुथल आंसुओं के रास्ते बहने का रास्ता नहीं खोज पातीं।।

जिनके हिस्से की कमजोरियाँ हमारी बाहों में जगह नहीं पातीं।
और जिनके बरगद होने की दुश्वारियों में फूल खिलना अवांछित है।।

पिता योद्धा होते हैं बेशक!
पर बच्चों की बाहों में टूटकर
जार-जार रोना उनकी भी ख्वाहिश होती है।।

कि पिताओं में भी कहीं, 
एक माँ छिपी होती है।

पर पिताओं के हिस्सों में नहीं होता माँ हो जाना।।
      -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav

White हमने उनके हिस्से मढ़ दीं हैं अनेक जिम्मेदारियाँ। हमने उनके कमजोर पड़ने को असंभव बताया।। हमने उनकी आँखों पर आने वाले आँसुओं को देखा आश्चर्यों की तरह हमेशा। हमने उनपे थोप सा दिया कठोर, विशाल बरगद हो जाना।। हमने पिताओं की ममता से ज्यादा तवज्जो उनके अविचल, अजेय, आराध्य होने को दिया। और इन सारे प्रतिमानों के तले दबते, पिसते रहें वो पिता, जिनके मन की उथल-पुथल आंसुओं के रास्ते बहने का रास्ता नहीं खोज पातीं।। जिनके हिस्से की कमजोरियाँ हमारी बाहों में जगह नहीं पातीं। और जिनके बरगद होने की दुश्वारियों में फूल खिलना अवांछित है।। पिता योद्धा होते हैं बेशक! पर बच्चों की बाहों में टूटकर जार-जार रोना उनकी भी ख्वाहिश होती है।। कि पिताओं में भी कहीं, एक माँ छिपी होती है। पर पिताओं के हिस्सों में नहीं होता माँ हो जाना।। -✍️अभिषेक यादव ©Abhishek Yadav

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