White पर्यावरण (दोहे)
देखा पर्यावरण को, विचलित होता मीत।
नष्ट कर रहा यह सभी, नहीं समझता रीत।।
कैसी हालत कर रहे, देखो ये नादान।
वृक्ष सभी ये काट कर, बनते हैं अनजान।।
दूषित भी ये कर रहे, हम सब की जो शान।
इसने ही पाला हमें, ये ही है वरदान।।
दाता ने हमको दिया, ये सुन्दर संसार।
पाया पर्यावरण को, है अपना शृंगार।।
धरती माता रो रहीं, देखा जो ये हाल।
मिटता पर्यावरण है, ऐसा फैला जाल।।
सोच समझ सब खो चुके, कैसे हों आबाद।
बैठे हैं जिस डाल पर, उसे करें बर्बाद।।
जीवों को भी हो रही, अब दिक्कत यह खास।
भटक रहे वे ग्राम को, रखते उनसे आस।।
भोजन की विपदा बड़ी, वो भी हैं भयभीत।
मानव संकट है बड़ा, होगी कैसे जीत।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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पर्यावरण (दोहे)
देखा पर्यावरण को, विचलित होता मीत।
नष्ट कर रहा यह सभी, नहीं समझता रीत।।
कैसी हालत कर रहे, देखो ये नादान।