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पर्दा (दोहे)
पर्दा पड़ता झूठ पर, हो अपयश सब ओर।
भ्रष्टाचारी का रहे, उस पर ही अब जोर।।
यह पर्दा दिखता नहीं, है फिर भी अनमोल।
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श्रद्धा (दोहे)
हिस्सों में अब बट रहीं, कितनी श्रृद्धा आज।
आफताब घेरे इन्हें, बन कर के वो बाज।।
घटनाओं का सिलसिला, बढ़ता है दिन रात।
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कलम (दोहे)
कलम चले जिस राह पर, लेख पत्र है नाम।
पोलें सब की खोलती, अद्भुत करती काम।।
दुर्जन इससे काँपते, होती सम तलवार।
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