धन-दौलत (दोहे) धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान। | हिंदी Poetry Video

"धन-दौलत (दोहे) धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान। जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।। मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मान। अहंकार में डूब कर, बनता वह अनजान।। जूझ रहा इंसान है, धन-दौलत को आज। इसको पाने के लिए, करता कुछ भी काज।। धन-दौलत ही चाहिए, पाने को सम्मान। इसके बिन कुछ है नहीं, खोते सब अरमान।। अपराधी घूमें फिरें, करने को वह काज। धन-दौलत को लूटते, समझें खुद सरताज।। धन-दौलत की चाह में, भटक रहा इंसान। उसे झपटने के लिए, भूल रहा ईमान।। ......................................................... देवेश दीक्षित स्वरचित एवं मौलिक ©Devesh Dixit "

धन-दौलत (दोहे) धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान। जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।। मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मान। अहंकार में डूब कर, बनता वह अनजान।। जूझ रहा इंसान है, धन-दौलत को आज। इसको पाने के लिए, करता कुछ भी काज।। धन-दौलत ही चाहिए, पाने को सम्मान। इसके बिन कुछ है नहीं, खोते सब अरमान।। अपराधी घूमें फिरें, करने को वह काज। धन-दौलत को लूटते, समझें खुद सरताज।। धन-दौलत की चाह में, भटक रहा इंसान। उसे झपटने के लिए, भूल रहा ईमान।। ......................................................... देवेश दीक्षित स्वरचित एवं मौलिक ©Devesh Dixit

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धन-दौलत (दोहे)

धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान।
जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।।

मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मान।
अहंकार में डूब कर, बनता वह अनजान।।

जूझ रहा इंसान है, धन-दौलत को आज।
इसको पाने के लिए, करता कुछ भी काज।।

धन-दौलत ही चाहिए, पाने को सम्मान।
इसके बिन कुछ है नहीं, खोते सब अरमान।।

अपराधी घूमें फिरें, करने को वह काज।
धन-दौलत को लूटते, समझें खुद सरताज।।

धन-दौलत की चाह में, भटक रहा इंसान।
उसे झपटने के लिए, भूल रहा ईमान।।
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देवेश दीक्षित

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