सोंधी मिट्टी की खुशबू का,कब से नाता टूट गया। जब से | हिंदी कविता

"सोंधी मिट्टी की खुशबू का,कब से नाता टूट गया। जब से साझे का चूला जी,चौराहे पर फूट गया। छूट गये रिश्ते जब से ही,वो ही खूब निभाते थे- अपनों ने अपनों को लूटा,नेह सभी का लूट गया।। भारत भूषण झा 'भरत' ©Bharat Bhushan Jha Bharat"

 सोंधी मिट्टी की खुशबू का,कब से नाता टूट गया।
जब से साझे का चूला जी,चौराहे पर फूट गया।
छूट गये रिश्ते जब से ही,वो ही खूब निभाते थे-
अपनों ने अपनों को लूटा,नेह सभी का लूट गया।।

भारत भूषण झा 'भरत'

©Bharat Bhushan Jha Bharat

सोंधी मिट्टी की खुशबू का,कब से नाता टूट गया। जब से साझे का चूला जी,चौराहे पर फूट गया। छूट गये रिश्ते जब से ही,वो ही खूब निभाते थे- अपनों ने अपनों को लूटा,नेह सभी का लूट गया।। भारत भूषण झा 'भरत' ©Bharat Bhushan Jha Bharat

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