सुरूर - ए - इल्म तबीयत उदास करती है। सो अक़्लमंदो | हिंदी कविता Video

"सुरूर - ए - इल्म तबीयत उदास करती है। सो अक़्लमंदो की सोहबत, उदास करती है। तुम्हें तो फ़िक्र है सोने के भाव बढ़ने का, हमें तो दाल की क़ीमत उदास करती है। तिलिस्म ए यार ही इतना हसीन है कि मुझे, विसाल - ए - यार की हसरत उदास करती है। वो ख़ुशमिज़ाज मुझे कल मिला सिसकते हुए, कहा था उसको मोहब्बत उदास करती है। ये ज़हनी ख़्वाब तुम नमाज़ियों को ही हो अता, हम मयक़शों को तो जन्नत उदास करती है। तसव्वुरात के हर शय को समझने की हनक, मेरे हुज़ूर; ये आदत उदास करती है। ©VAIRAGI "

सुरूर - ए - इल्म तबीयत उदास करती है। सो अक़्लमंदो की सोहबत, उदास करती है। तुम्हें तो फ़िक्र है सोने के भाव बढ़ने का, हमें तो दाल की क़ीमत उदास करती है। तिलिस्म ए यार ही इतना हसीन है कि मुझे, विसाल - ए - यार की हसरत उदास करती है। वो ख़ुशमिज़ाज मुझे कल मिला सिसकते हुए, कहा था उसको मोहब्बत उदास करती है। ये ज़हनी ख़्वाब तुम नमाज़ियों को ही हो अता, हम मयक़शों को तो जन्नत उदास करती है। तसव्वुरात के हर शय को समझने की हनक, मेरे हुज़ूर; ये आदत उदास करती है। ©VAIRAGI

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