बात बनते बनते बिगड़ गई है, जो थी कभी अपनी, अब पराई | हिंदी कविता

"बात बनते बनते बिगड़ गई है, जो थी कभी अपनी, अब पराई है। ख्वाब सजते सजते रह गए हैं, रात ढलते ढलते सुबह आई है। दिल के रिश्ते नाजुक थे जो कभी, उनमें दरार आज यहाँ आई है। सोचा था जो रोशनी होगी चिराग़ों में, वो तो बादलों में छिपी छाई है। बात बनते बनते बिगड़ गई है, जो थी कभी अपनी, अब पराई है। ©Love Joshi"

 बात बनते बनते बिगड़ गई है,
जो थी कभी अपनी, अब पराई है।

ख्वाब सजते सजते रह गए हैं,
रात ढलते ढलते सुबह आई है।

दिल के रिश्ते नाजुक थे जो कभी,
उनमें दरार आज यहाँ आई है।

सोचा था जो रोशनी होगी चिराग़ों में,
वो तो बादलों में छिपी छाई है।

बात बनते बनते बिगड़ गई है,
जो थी कभी अपनी, अब पराई है।

©Love Joshi

बात बनते बनते बिगड़ गई है, जो थी कभी अपनी, अब पराई है। ख्वाब सजते सजते रह गए हैं, रात ढलते ढलते सुबह आई है। दिल के रिश्ते नाजुक थे जो कभी, उनमें दरार आज यहाँ आई है। सोचा था जो रोशनी होगी चिराग़ों में, वो तो बादलों में छिपी छाई है। बात बनते बनते बिगड़ गई है, जो थी कभी अपनी, अब पराई है। ©Love Joshi

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