दिल बेजुबां है वरना हम बोल भी देते
हर राज़ अपने दिल का हम खोल भी देते
तूम हमपे तरस खाके देती हो शराब शेखर
जो दिलबर तरस खाए तो पीना छोड़ भी देते
ये इश्क तो इकरार न इंकार है ऐ शेखर
कभी आईना जो बोले तो उसे तोड़ भी देते
फिर रात ढ़ल रही है आशियां में तेरे शेखर
उनकी याद ना आए तो जीना छोड़ भी देते
कवि शशांक शेखर त्रिपाठी (निराला)
अधूरी मोहब्बत