बन गई थी जान पे, मर गया मुस्कान पे, बोल कुछ पाय | हिंदी शायरी

"बन गई थी जान पे, मर गया मुस्कान पे, बोल कुछ पाया नहीं, दब गया एहसान पे, आ गया तेरी गली, तरस खा मेहमान पे, जुर्म कर भागा छली, कर इशारे नादान पे, आस्था-विश्वास बिन, करे शक भगवान पे, बेईमानों ने उठाई, ऊँगलियाँ ईमान पे, रात पर भारी पड़ा, दीप एक दालान पे, क्रोध में सुल्तान गुंजन, अडिग था फ़रमान पे, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra"

 बन गई थी जान पे, 
मर गया मुस्कान पे, 

बोल कुछ पाया नहीं, 
दब गया  एहसान पे, 

आ  गया  तेरी  गली, 
तरस खा मेहमान पे, 

जुर्म कर भागा छली, 
कर इशारे  नादान पे,

आस्था-विश्वास बिन, 
करे शक भगवान पे,

बेईमानों   ने   उठाई, 
ऊँगलियाँ   ईमान  पे,

रात  पर  भारी  पड़ा, 
दीप  एक  दालान  पे,

क्रोध में सुल्तान गुंजन, 
अडिग  था  फ़रमान पे,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

बन गई थी जान पे, मर गया मुस्कान पे, बोल कुछ पाया नहीं, दब गया एहसान पे, आ गया तेरी गली, तरस खा मेहमान पे, जुर्म कर भागा छली, कर इशारे नादान पे, आस्था-विश्वास बिन, करे शक भगवान पे, बेईमानों ने उठाई, ऊँगलियाँ ईमान पे, रात पर भारी पड़ा, दीप एक दालान पे, क्रोध में सुल्तान गुंजन, अडिग था फ़रमान पे, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#मर गया मुस्कान पे#

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