White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोट | हिंदी Quotes

"White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाला नादां बनकर यूं सबसे खूब ठिठोले करता हूं मगर पराई बातों से और यू अपनों की तानों से बिखर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। तुलना खुद से करके किसी और की खुशियां दर्द को दवा बनाकर ऐसे निखर जाता हूं मगर दुनियां की रंगत से कुछ अनचाहे संगत से यूं ठहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। सबकी बातें सुन लेता ना कोई शिकायत करता हूं जब अपने ही न एक रहे रिश्ते नाते ना नेक रहे दिल मे कुटिल खेल को देख ऐसे सिहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। जीवन में दमन दाम का खेल ढलते सूरज से शाम का मेल न शाम सुहानी होती है न रात, रात को सोती है फिर भी प्रात: का मेल अरुण से देख संवर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। ~Aakash Dwivedi ✍️ #कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त ©Aakash Dwivedi"

 White l#डर_जाता_हूं_मैं

डर जाता हूं मैं 
छोटी छोटी खुशियों से 
खुश होने वाला
नादां बनकर यूं सबसे
खूब ठिठोले करता हूं 
मगर पराई बातों से और 
यू अपनों की तानों से 
बिखर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
तुलना खुद से करके
किसी और की खुशियां 
दर्द को दवा बनाकर 
ऐसे निखर जाता हूं
मगर दुनियां की रंगत से 
कुछ अनचाहे संगत से 
यूं ठहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
सबकी बातें सुन लेता 
ना कोई शिकायत करता हूं 
जब अपने ही न एक रहे 
रिश्ते नाते ना नेक रहे 
दिल मे कुटिल खेल को देख 
ऐसे सिहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
जीवन में दमन दाम का खेल 
ढलते सूरज से शाम का मेल 
न शाम सुहानी होती है 
न रात, रात को सोती है 
फिर भी प्रात: का मेल अरुण से 
देख संवर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।

  ~Aakash Dwivedi ✍️ 

#कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त

©Aakash Dwivedi

White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाला नादां बनकर यूं सबसे खूब ठिठोले करता हूं मगर पराई बातों से और यू अपनों की तानों से बिखर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। तुलना खुद से करके किसी और की खुशियां दर्द को दवा बनाकर ऐसे निखर जाता हूं मगर दुनियां की रंगत से कुछ अनचाहे संगत से यूं ठहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। सबकी बातें सुन लेता ना कोई शिकायत करता हूं जब अपने ही न एक रहे रिश्ते नाते ना नेक रहे दिल मे कुटिल खेल को देख ऐसे सिहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। जीवन में दमन दाम का खेल ढलते सूरज से शाम का मेल न शाम सुहानी होती है न रात, रात को सोती है फिर भी प्रात: का मेल अरुण से देख संवर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। ~Aakash Dwivedi ✍️ #कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त ©Aakash Dwivedi

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