Aakash Dwivedi

Aakash Dwivedi

B.H.U. Varanasi राही 🧡 lover write ✍️

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अलंकृत हुई वह उस वंशज से जो देवों की बानी हो मातृभाषा की ताज लिये जो भाषाओं की रानी हो। शब्द,व्याख्या,संवादों से स्वयं को जो परिपूर्ण करे सत्य है उस भाषा की सिद्धी राष्ट्र को सम्पूर्ण करे।। हिन्द की हिन्दी से जहां अखंड राष्ट्र को लाना है सभ्यताओं संस्कृतियों के बल विश्वगुरु कहलाना है विस्मृत हुए,जो बीत गया उस काल को दोहराना है आओ हम संकल्प करें अब हिंदी परचम लहराना है सरल, सुन्दर,सुमनोहर हिन्दी का जो गान करे मातृभूमि की पावनधरा पर स्वयं वो अभिमान करे। दिन,पाख,या मास,वर्ष हो बारम्बार बखान करे हिन्द हिन्दी हिन्दुस्तान अमर रहे भगवान करे।।                                               Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#हिन्दी #कहानी #कविता #शायरी #AakashDwivedi #गज़ल  अलंकृत हुई वह उस वंशज से जो देवों की बानी हो
मातृभाषा की ताज लिये जो भाषाओं की रानी हो।
शब्द,व्याख्या,संवादों से स्वयं को जो परिपूर्ण करे
सत्य है उस भाषा की सिद्धी राष्ट्र को सम्पूर्ण करे।।

हिन्द की हिन्दी से जहां अखंड राष्ट्र को लाना है
सभ्यताओं संस्कृतियों के बल विश्वगुरु कहलाना है
विस्मृत हुए,जो बीत गया उस काल को दोहराना है
आओ हम संकल्प करें अब हिंदी परचम लहराना है

सरल, सुन्दर,सुमनोहर हिन्दी का जो गान करे
मातृभूमि की पावनधरा पर स्वयं वो अभिमान करे।
दिन,पाख,या मास,वर्ष हो बारम्बार बखान करे
हिन्द हिन्दी हिन्दुस्तान अमर रहे भगवान करे।।

                     
                         Aakash Dwivedi ✍️

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विषधर का विष भी नहीं है उतना जितना मानव मे समाया है। कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू पर मानुष तन ने तो पचाया है।। पद का मद है मोह भरा क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं। धार तेज कर हथियार रख लिया जितना की उसका म्यान नहीं।। मन से मानवता का पाठ हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।। दूसरों की ही अच्छाई देखकर खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।। बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर अंदर के कोलाहल न सुना।। सर्प कभी अपना न हुआ जो अपनो को भी स्वयं भुना। तू नहीं जानता जो हुआ है ना जान पाएगा जो भी होगा बस देख रहा अपने पालने की अरे सब के साथ वही होगा तर्क करो कुतर्क  नहीं सजग रहो सतर्क वहीं खुद को खुदा उसी ने कहा है जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#कविता #कहानी #शायरी #AakashDwivedi #मानव  विषधर का विष भी नहीं है उतना
जितना मानव मे समाया है।
कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू
पर मानुष तन ने तो पचाया है।।

पद का मद है मोह भरा
क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं।
धार तेज कर हथियार रख लिया
जितना की उसका म्यान नहीं।।
मन से मानवता का पाठ
हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।।
दूसरों की ही अच्छाई देखकर
खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।।
बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर 
अंदर के कोलाहल न सुना।।
सर्प कभी अपना न हुआ
जो अपनो को भी स्वयं भुना।
तू नहीं जानता जो हुआ है 
ना जान पाएगा जो भी होगा
बस देख रहा अपने पालने की
अरे सब के साथ वही होगा 
तर्क करो कुतर्क  नहीं 
सजग रहो सतर्क वहीं
खुद को खुदा उसी ने कहा है
जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।।

                     Aakash Dwivedi ✍️

©Aakash Dwivedi
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बीत रहा समय दिन गुजर जा रहे हैं पर हमे ना पता हम किधर जा रहे हैं माटी की गंध से भूत को भूल कर ऐसे आपस के मैं,मैं से मर जा रहे हैं।। प्रेम प्रेमी के प्रेम से ठहर जा रहे हैं भूलकर अपनी भूल कई गदर जा रहे हैं प्रेम के उस गली के यूं तो प्रेमी बहुत, भीड़ में भीड़ बनके इस कदर जा रहे हैं।। बांगो के फूलों में तो भंवर जा रहे हैं भाग्य के खेल से कुछ संवर जा रहे हैं धुंधला धुंधला सुबह धुंधली धुंधली है शाम कुछ नहीं दिख रहा उस डगर जा रहे हैं।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#कविता #शायरी #AakashDwivedi #Stories #talaash  बीत रहा समय दिन गुजर जा रहे हैं
पर हमे ना पता हम किधर जा रहे हैं 
 माटी की गंध से भूत को भूल कर 
ऐसे आपस के मैं,मैं से मर जा रहे हैं।।

प्रेम प्रेमी के प्रेम से ठहर जा रहे हैं
भूलकर अपनी भूल कई गदर जा रहे हैं
प्रेम के उस गली के यूं तो प्रेमी बहुत,
भीड़ में भीड़ बनके इस कदर जा रहे हैं।।

बांगो के फूलों में तो भंवर  जा रहे हैं
भाग्य के खेल से कुछ संवर जा रहे हैं
धुंधला धुंधला सुबह धुंधली धुंधली है शाम
कुछ नहीं दिख रहा उस डगर जा रहे हैं।।

             Aakash Dwivedi ✍️

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ये कैसा बदलाव है हर एक मोड़ पर घाव है जीवन सदी या दबी रह गई या दोनों की टकराव है? कौन अपना कौन पराया यह बात किसने बतलाया जिसको जिसने देखा जैसे वैसे मन में छवि बनाया। रस के रसिक कहां खोए थे रिश्तों के कुछ बीज बोए थे अपनो से आशीष की मांग थी उस डगर सभी ने हाथ धोए थे। अकेले था चलना,तो सीख रहे थे बाजारों में लोग जो चीख रहे थे गर सुना किसी का कोई बात तो मंजिल मे कंकड़ दीख रहे थे। ©Aakash Dwivedi

 ये कैसा बदलाव है
हर एक मोड़ पर घाव है
जीवन सदी या दबी रह गई
या दोनों की टकराव है?
कौन अपना कौन पराया
यह बात किसने बतलाया
जिसको जिसने देखा जैसे
वैसे मन में छवि बनाया।
रस के रसिक कहां खोए थे 
रिश्तों के कुछ बीज बोए थे
अपनो से आशीष की मांग थी
उस डगर सभी ने हाथ धोए थे।
अकेले था चलना,तो सीख रहे थे
बाजारों में लोग जो चीख रहे थे
गर सुना किसी का कोई बात 
तो मंजिल मे कंकड़ दीख रहे थे।

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वासंतिक कविता 🍁

सुहावना मौसम है आया ।
झोली भर कर खुशियां लाया।।

धरा मनहर सुगन्ध महकावे 
चहूं दिशी गगन साज सजावे।
मन्द पवन मन को अति भावे
वो ऋतु राज वसन्त कहलावे।।

पेड़ों पर छाई हरियाली
नए नए शाक सजाये डाली।
दृश्य मनोहर मन हर्षावे
पतझड़ बीत वसंत जब आवे।।

बाग बगीचे, वन मुस्काए
फसलें खेतों में लहराएं।
अद्भुत, अदम्य और अनन्त है 
सबसे न्यारा यह वसन्त है।।

गगन चूम जब कोयल आवे
अपने मीठे बोल सुनावे।
मन पुलकित, हृदय प्रसन्न है
सबका प्यारा यह वसन्त है।।

              Aakash Dwivedi ✍️

©Aakash Dwivedi

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