शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है, समराठ.... | हिंदी Poetry

"शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है, समराठ.... नई खिड़की से ये कमरा रोशनदान है। इस हल्की ठंडी हवा में, नई महक सी घुल आई है। इन आती जाती हिचकियों में, आज ही की बात याद बन आई है। उस गुमनाम शहर में तेरे नाम का एक मकान है, उसकी गुमनाम गली का अभी रास्ता अंजान है। ©सम्राठ"

 शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है,
समराठ.... नई खिड़की से ये कमरा रोशनदान है।
इस हल्की ठंडी हवा में,
नई महक सी घुल आई है।
इन आती जाती हिचकियों में,
आज ही की बात याद बन आई है।
उस गुमनाम शहर में तेरे नाम का एक मकान है,
उसकी गुमनाम गली का अभी रास्ता अंजान है।

©सम्राठ

शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है, समराठ.... नई खिड़की से ये कमरा रोशनदान है। इस हल्की ठंडी हवा में, नई महक सी घुल आई है। इन आती जाती हिचकियों में, आज ही की बात याद बन आई है। उस गुमनाम शहर में तेरे नाम का एक मकान है, उसकी गुमनाम गली का अभी रास्ता अंजान है। ©सम्राठ

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