सम्राठ

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maa ke pet se marghat tak hai teri kahani pag pag pyare dangal dangal........

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किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम, हाथ उठा लिए सबने और दुआ नही मालूम। आज सबको दावा है अपनी-अपनी चाहत का, कौन किससे होता कल जुदा नहीं मालूम। मंजिलों की तब्दीली बस नज़र में रहती है, हम भी होते जा रहे क्या से क्या नही मालूम। हम फ़राज़ शेरों से दिल के ज़ख्म भरते हैं, क्या करें मसीहे को दवा नही मालूम। , ©सम्राठ

#lightning  किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम,
हाथ उठा लिए सबने और दुआ नही मालूम।

आज सबको दावा है अपनी-अपनी चाहत का,
कौन किससे होता कल जुदा नहीं मालूम।

मंजिलों की तब्दीली बस नज़र में रहती है,
हम भी होते जा रहे क्या से क्या नही मालूम।

हम फ़राज़ शेरों से दिल के ज़ख्म भरते हैं,
क्या करें मसीहे को दवा नही मालूम।








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©सम्राठ

#lightning

9 Love

राहें जो छूट गई, अब उनका गम न कर। पीछे यूं मुड़ मुड़ कर, रफ्तार अपनी कम न कर। मोड़ जो तूने न लिए, ना मुड़ना तेरा तय ही था। जहां आकर आज तू खड़ा है, यहां होना तेरा तय ही था। ©सम्राठ

#hibiscussabdariffa  राहें जो छूट गई, 
अब उनका गम न कर।
पीछे यूं मुड़ मुड़ कर, 
रफ्तार अपनी कम न कर।
मोड़ जो तूने न लिए, 
ना मुड़ना तेरा तय ही था।
जहां आकर आज तू खड़ा है,
यहां होना तेरा तय ही था।

©सम्राठ

प्याले प्याले के मोहताज़ हुए जा रहे , हम तो मधुशाला में आंसुओं के जाम पिए जा रहे, हम तो। काफी नशा कर रखा है इस दिल ने, सो प्याले में इसी को निचोड़े जा रहे , हम तो। ज़िंदगी सवाल करने की नुमाईश में लगती है, फटी जेब में पर्चे तैयार कर रखे, हम तो। ये कैसी परीक्षा देते जा रहे हैं, अरे! हर ही बार अव्वल आते जा रहे, हम तो। उठा कर हमे वो फिर गिरा जाते है, सो अब घुटनों पर चलने लगे, हम तो। ©सम्राठ

#MoonShayari  प्याले प्याले के मोहताज़ हुए जा रहे , हम तो
मधुशाला में आंसुओं के जाम पिए जा रहे, हम तो।

काफी नशा कर रखा है इस दिल ने,
सो प्याले में इसी को निचोड़े जा रहे , हम तो।

ज़िंदगी सवाल करने की नुमाईश में लगती है,
फटी जेब में पर्चे तैयार कर रखे, हम तो।

ये कैसी परीक्षा देते जा रहे हैं,
अरे! हर ही बार अव्वल आते जा रहे, हम तो।

उठा कर हमे वो फिर गिरा जाते है,
सो अब घुटनों पर चलने लगे, हम तो।

©सम्राठ

#MoonShayari

11 Love

शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है, समराठ.... नई खिड़की से ये कमरा रोशनदान है। इस हल्की ठंडी हवा में, नई महक सी घुल आई है। इन आती जाती हिचकियों में, आज ही की बात याद बन आई है। उस गुमनाम शहर में तेरे नाम का एक मकान है, उसकी गुमनाम गली का अभी रास्ता अंजान है। ©सम्राठ

 शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है,
समराठ.... नई खिड़की से ये कमरा रोशनदान है।
इस हल्की ठंडी हवा में,
नई महक सी घुल आई है।
इन आती जाती हिचकियों में,
आज ही की बात याद बन आई है।
उस गुमनाम शहर में तेरे नाम का एक मकान है,
उसकी गुमनाम गली का अभी रास्ता अंजान है।

©सम्राठ

शाखों की खिड़की से जब देखता कोई चांद है, समराठ.... नई खिड़की से ये कमरा रोशनदान है। इस हल्की ठंडी हवा में, नई महक सी घुल आई है। इन आती जाती हिचकियों में, आज ही की बात याद बन आई है। उस गुमनाम शहर में तेरे नाम का एक मकान है, उसकी गुमनाम गली का अभी रास्ता अंजान है। ©सम्राठ

10 Love

फितूर था, तो उड़ना सीख गए, गुलाब पर बैठना, उसे चुनना सीख गए, एक तूफ़ान उजाड़ गया सारा बगीचा, हम रातों-रात कांटों पर चलना सीख गए। बेफ़िक्री में, हम रातों को गश्त लगाया करते, हवाओं से बातें करते, आसमानों में झूला करते, एक अंधेरा, मेरे घर की रोशनी चुरा ले गया, हम रातों को आंखों पर पहरा देना सीख गए। नीर को सागर में खेलते देखा है, दरिया में नांव को टहलते देखा है, ये हाशिए की रेत कब रेगिस्तान में बदल जायेगी, मेरी प्यासी निगाह ने रेत को निचोड़ के देखा है। ©सम्राठ

#mountain  फितूर था, तो उड़ना सीख गए,
गुलाब पर बैठना, उसे चुनना सीख गए,
एक तूफ़ान उजाड़ गया सारा बगीचा,
हम रातों-रात कांटों पर चलना सीख गए।

बेफ़िक्री में, हम रातों को गश्त लगाया करते,
हवाओं से बातें करते, आसमानों में झूला करते,
एक अंधेरा, मेरे घर की रोशनी चुरा ले गया,
हम रातों को आंखों पर पहरा देना सीख गए।

नीर को सागर में खेलते देखा है,
दरिया में नांव को टहलते देखा है,
ये हाशिए की रेत कब रेगिस्तान में बदल जायेगी,
मेरी प्यासी निगाह ने रेत को निचोड़ के देखा है।

©सम्राठ

#mountain

17 Love

Ghoom jaati hain vo yaadein Jinka mujh tak aane ka kiraya nahi tha. Kishtein chuka raha hoon un lamhon ki Jinka udhaar kabhi mene mangaya hi nahi tha. Aaj ye hai meri halat Kyunki mene kisi ke aage sar jhukaya nahi tha. Likhta jaa raha hai Samraath Har vo lamha Jiska ek shabd bhi uski kalam par Aane ke layak nahi tha. ©सम्राठ

#kitaabein  Ghoom jaati hain vo yaadein 
Jinka mujh tak aane ka kiraya nahi tha.

Kishtein chuka raha hoon un lamhon ki
Jinka udhaar kabhi mene mangaya hi nahi tha.

Aaj ye hai meri halat 
Kyunki mene kisi ke aage sar jhukaya nahi tha.

Likhta jaa raha hai Samraath 
Har vo lamha 
Jiska ek shabd bhi uski kalam par
Aane ke layak nahi tha.

©सम्राठ

#kitaabein

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