किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम,
हाथ उठा लिए सबने और दुआ नही मालूम।
आज सबको दावा है अपनी-अपनी चाहत का,
कौन किससे होता कल जुदा नहीं मालूम।
मंजिलों की तब्दीली बस नज़र में रहती है,
हम भी होते जा रहे क्या से क्या नही मालूम।
हम फ़राज़ शेरों से दिल के ज़ख्म भरते हैं,
क्या करें मसीहे को दवा नही मालूम।
,
©सम्राठ
#lightning