"अतिथि"
"सम्माननीय आगंतुक" है स्वरूप भगवान का।
प्रिय अतिथि कब आओगे?
आपके दीदार को मेरे चक्षु तरस गए हैं।
सहृदय मन को भाने वाले,
संपूर्ण वर्ष में कभी-कभी आने वाले।
प्रिय अतिथि कब आओगे?
मन व्याकुल है प्रिय तुमसे मिलने को,
गपशप करते हंसते-ठिठुलाते,
मन भर-भर के खुशियां लाते।
प्रिय अतिथि कब आओगे?
फूलों का थाल व्याकुल है,
तुम्हारे स्वागत को,
ये नन्हा-सा लाल व्याकुल है।
बीत चले अरसे कई तुम्हें देखे हुए,
इतना नहीं तरसे कभी,
प्रिय अतिथि कब आओगे?
घर बैठे दुनियां दिखलाते,
तरह-तरह की बात बताते,
ज्ञानता का पाठ पढ़ाते,
संग तुम्हारे हम भ्रमण को जाते।
प्रिय अतिथि कब आओगे?
कब खुशियों को लाओगे,
प्रिय अतिथि तुम जल्दी आना,
अबकी बार जल्द मत जाना।
©Vishnu Rathore
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