नारी मन........!! निश्छल........! प | हिंदी कविता

"नारी मन........!! निश्छल........! पर कुंठित भी.....!! ममता की पराकाष्ठा...........! स्नेह पूर्ण, प्रेम में द्रवित भी...! क्षोभरहित तो कभी क्षोभ पूर्ण...........................! अपने खुशियों का गला घोंटे उसका पश्चाताप भी....!! नारी मन.........!!! प्रेम के लिए व्याकुल............... विरह की अग्नि में जला भी.....!! न कोई विरोध न अभियोग........ लाख संभाले चुनरिया............. परन्तु दाग लग ही जाते समाज की..........!!! नारी मन में..........................! आते सवालों के भूचाल भी.....!! पर नारी..... सबकी मंगलकामना करती.......! रक्खे कितने व्रत उपवास भी......!! विधवा होते ही कभी कहलाए अपशगुन..............! कभी कहलाए डायन, समाज के लिए अभिशाप भी....!! फिर भी एक नारी...................! मूक बनी रहती है....................! प्रश्नों की सुनामी रहते मन में...... पर मुख से कुछ नहीं कहती है....!! सबको खुश करने में.......................!! हर इल्जाम अपने सर लेती है..........!!! ©Priyanjali"

 नारी मन........!!
     निश्छल........!
          पर कुंठित भी.....!! 
ममता की पराकाष्ठा...........!
स्नेह पूर्ण, प्रेम में द्रवित भी...!
क्षोभरहित तो कभी क्षोभ पूर्ण...........................! 
अपने खुशियों का गला घोंटे उसका पश्चाताप भी....!!

नारी मन.........!!!
प्रेम के लिए व्याकुल...............
विरह की अग्नि में जला भी.....!!
न कोई विरोध न अभियोग........
लाख संभाले चुनरिया............. 
परन्तु दाग लग ही जाते समाज की..........!!!

नारी मन में..........................!
आते सवालों के भूचाल भी.....!!
पर नारी.....
 सबकी मंगलकामना करती.......!
   रक्खे कितने व्रत उपवास भी......!!
विधवा होते ही कभी कहलाए अपशगुन..............!
कभी कहलाए डायन, समाज के लिए अभिशाप भी....!!

फिर भी एक नारी...................!
मूक बनी रहती है....................!
    प्रश्नों की सुनामी रहते मन में......
               पर मुख से कुछ नहीं कहती है....!!
           सबको खुश करने में.......................!!
         हर इल्जाम अपने सर लेती है..........!!!

©Priyanjali

नारी मन........!! निश्छल........! पर कुंठित भी.....!! ममता की पराकाष्ठा...........! स्नेह पूर्ण, प्रेम में द्रवित भी...! क्षोभरहित तो कभी क्षोभ पूर्ण...........................! अपने खुशियों का गला घोंटे उसका पश्चाताप भी....!! नारी मन.........!!! प्रेम के लिए व्याकुल............... विरह की अग्नि में जला भी.....!! न कोई विरोध न अभियोग........ लाख संभाले चुनरिया............. परन्तु दाग लग ही जाते समाज की..........!!! नारी मन में..........................! आते सवालों के भूचाल भी.....!! पर नारी..... सबकी मंगलकामना करती.......! रक्खे कितने व्रत उपवास भी......!! विधवा होते ही कभी कहलाए अपशगुन..............! कभी कहलाए डायन, समाज के लिए अभिशाप भी....!! फिर भी एक नारी...................! मूक बनी रहती है....................! प्रश्नों की सुनामी रहते मन में...... पर मुख से कुछ नहीं कहती है....!! सबको खुश करने में.......................!! हर इल्जाम अपने सर लेती है..........!!! ©Priyanjali

नारी मन........!!
निश्छल........!
पर कुंठित भी.....!!
ममता की पराकाष्ठा...........!
स्नेह पूर्ण, प्रेम में द्रवित भी...!
क्षोभरहित तो कभी क्षोभ पूर्ण............!
अपने खुशियों का गला घोंटे उसका पश्चाताप भी....!!

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