समाज और संपोले ____________________ ये सभ्य समाज | हिंदी कविता

"समाज और संपोले ____________________ ये सभ्य समाज के संपोले समझते नहीं है किसी की विवशता को भर देते जिंदगी अश्कों से मूल्य देते बस अपनी निजता को ये सभ्य समाज के संपोले। स्वार्थ परता से भरे हुए है आस्तीन के सांप बने हुए है लूट ली जिंदगियां इन्होंने झूठी सभ्यता में सने हुए है भरे हुए खुद ही विष से दंश देते भोले भालों को ये सभ्य समाज के संपोले। पर हित का पाठ पढ़ाने वाले सत्य की राह दिखाने वाले खुद ही झूठ से बने हुए है जने हुए है छली छवि के देते ये आंसू , समझो इनको ये सभ्य समाज के संपोले। गहराता अंधकार जितना दिखलाते अपना असल रूप साकार उतना करते फरोश जज्बातों का है इन्हें लगता ये अधिकार अपना जो मूल्यहीन व्यवहार से क्या जाने टूटे सपनों को ये सभ्य समाज के संपोले। ©KAVYaKLPNA"

 समाज और संपोले
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ये सभ्य समाज के संपोले
समझते नहीं है किसी की विवशता को
भर देते जिंदगी अश्कों से 
मूल्य देते बस अपनी निजता को 
ये सभ्य समाज के संपोले।

स्वार्थ परता से भरे हुए है
आस्तीन के सांप बने हुए है
लूट ली जिंदगियां इन्होंने 
झूठी सभ्यता में सने हुए है 
भरे हुए खुद ही विष से 
दंश देते भोले भालों को
ये सभ्य समाज के संपोले।

पर हित का पाठ पढ़ाने वाले 
सत्य की राह दिखाने वाले 
खुद ही झूठ से बने हुए है 
जने हुए है छली छवि के 
देते ये आंसू , समझो इनको 
ये सभ्य समाज के संपोले।

गहराता अंधकार जितना 
दिखलाते अपना असल रूप साकार उतना
करते फरोश जज्बातों का है 
इन्हें लगता ये अधिकार अपना
जो मूल्यहीन व्यवहार से
क्या जाने टूटे सपनों को
ये सभ्य समाज के संपोले।

©KAVYaKLPNA

समाज और संपोले ____________________ ये सभ्य समाज के संपोले समझते नहीं है किसी की विवशता को भर देते जिंदगी अश्कों से मूल्य देते बस अपनी निजता को ये सभ्य समाज के संपोले। स्वार्थ परता से भरे हुए है आस्तीन के सांप बने हुए है लूट ली जिंदगियां इन्होंने झूठी सभ्यता में सने हुए है भरे हुए खुद ही विष से दंश देते भोले भालों को ये सभ्य समाज के संपोले। पर हित का पाठ पढ़ाने वाले सत्य की राह दिखाने वाले खुद ही झूठ से बने हुए है जने हुए है छली छवि के देते ये आंसू , समझो इनको ये सभ्य समाज के संपोले। गहराता अंधकार जितना दिखलाते अपना असल रूप साकार उतना करते फरोश जज्बातों का है इन्हें लगता ये अधिकार अपना जो मूल्यहीन व्यवहार से क्या जाने टूटे सपनों को ये सभ्य समाज के संपोले। ©KAVYaKLPNA

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