मेरा तन है यहाँ पर मन नहीं है।
मधु है, वन है, पर मधुवन नहीं है।
तेरा दर छोड़ कर मैं जा रहा हूँ,
मगर जाने को, मेरा मन नहीं है।
मेरे किरदार की है ये ग़मक जां
के मेरे पास तो चंदन नहीं है।
थपेड़े लू के ही मिलते हैं मुझको
मेरी इस ज़ीस्त में सावन नहीं है।
वफ़ा है खूब पर इसके सिवा अब
'मधु' के पास कोई धन नहीं है।
©Madhusudan Shrivastava
#delicate नहीं है@Chocolate