समय का पहिया घूमता जाए मन के घोड़े का क्या कहना। पल | हिंदी कविता

"समय का पहिया घूमता जाए मन के घोड़े का क्या कहना। पल में प्रलय पल में खुशियाँ देखे सपनों का क्या कहना। आशाएं ले रंगमंच पर उतरे उन किरदारों का क्या कहना। छा जाते आवाम में कुछ गुमनाम किरदारों का क्या कहना। संतोष नहीं सोहरत पाकर भी उन धनलोलुप का क्या कहना। मुक़र जाते जो अपने वादे से उन सफ़ेदपोश का क्या कहना। मन मैला,संकुचित विचार उन मक्कारों का क्या कहना। दर्पण को भी झुठलाने वाले दागी दानव का क्या कहना। समय के चक्र से कौन बचा भगवान के दंड का क्या कहना। आशा ही नहीं विश्वास भी है इन्हीं किरदारों से आश भी है फूल के संग काँटों के सामंजस्य का क्या कहना। ©pawan kumar suman"

 समय का पहिया घूमता जाए
मन के घोड़े का क्या कहना।
पल में प्रलय पल में खुशियाँ 
देखे सपनों का क्या कहना।

आशाएं ले रंगमंच पर उतरे 
उन किरदारों का क्या कहना।
छा जाते आवाम में कुछ
गुमनाम किरदारों का क्या कहना।

संतोष नहीं सोहरत पाकर भी
उन धनलोलुप का क्या कहना।
मुक़र जाते जो अपने वादे से
उन सफ़ेदपोश का क्या कहना।

मन मैला,संकुचित विचार
उन मक्कारों का क्या कहना।
दर्पण को भी झुठलाने वाले
दागी दानव का क्या कहना।

समय के चक्र से कौन बचा
भगवान के दंड का क्या कहना।
आशा ही नहीं विश्वास भी है
इन्हीं किरदारों से आश भी है
फूल के संग काँटों के 
सामंजस्य का क्या कहना।

©pawan kumar suman

समय का पहिया घूमता जाए मन के घोड़े का क्या कहना। पल में प्रलय पल में खुशियाँ देखे सपनों का क्या कहना। आशाएं ले रंगमंच पर उतरे उन किरदारों का क्या कहना। छा जाते आवाम में कुछ गुमनाम किरदारों का क्या कहना। संतोष नहीं सोहरत पाकर भी उन धनलोलुप का क्या कहना। मुक़र जाते जो अपने वादे से उन सफ़ेदपोश का क्या कहना। मन मैला,संकुचित विचार उन मक्कारों का क्या कहना। दर्पण को भी झुठलाने वाले दागी दानव का क्या कहना। समय के चक्र से कौन बचा भगवान के दंड का क्या कहना। आशा ही नहीं विश्वास भी है इन्हीं किरदारों से आश भी है फूल के संग काँटों के सामंजस्य का क्या कहना। ©pawan kumar suman

#BadhtiZindagi गुमनाम किरदारों का क्या कहना

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