खुद्दारी को ताख पे रखना पड़ता है दौलत कमाने के लिए | हिंदी Shayari

"खुद्दारी को ताख पे रखना पड़ता है दौलत कमाने के लिए मन को स्याह करना पड़ता है गम की रंगत छुपाने के लिए वो एक हसी का चित्र जो ज़ेहन से मिटता ही नहीं पूरी जिंदगी भी कम है उसकी सूरत भुलाने के लिए ©Aditya Mishra 'mukhtalif'"

 खुद्दारी को ताख पे रखना पड़ता है दौलत कमाने के लिए
मन को स्याह करना पड़ता है गम की रंगत छुपाने के लिए

वो एक हसी का चित्र जो ज़ेहन से मिटता ही नहीं
पूरी जिंदगी भी कम है उसकी सूरत भुलाने के लिए

©Aditya Mishra 'mukhtalif'

खुद्दारी को ताख पे रखना पड़ता है दौलत कमाने के लिए मन को स्याह करना पड़ता है गम की रंगत छुपाने के लिए वो एक हसी का चित्र जो ज़ेहन से मिटता ही नहीं पूरी जिंदगी भी कम है उसकी सूरत भुलाने के लिए ©Aditya Mishra 'mukhtalif'

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