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दिल के अलफाजों को काफ़िए में कह जाता हूं आदमी तो आम ही हूं कभी कभी शायर बन जाता हूं
जो लोग रातों में सोना भूल जाते है वही फिर सपने संजोना भूल जाते है जिनसे सब कुछ छीन लेती हैं ये ज़ालिम दुनिया वही लोग पाकर फिर खोना भूल जाते है बोहत मज़बूत बनने की कोशिश में अक्सर हमारे लड़के रोना भूल जाते है जो खुशी के नगमों में ही मशगूल रह जाते है वही शायर दर्द के लफ्जों को पिरोना भूल जाते है जिन्हे झूठी हंसी हंसने से ही फुर्सत नही मिलती वही ' मुख्तलिफ ' लोग आंखे भिगोना भूल जाते है ©Aditya Mishra 'mukhtalif'
Aditya Mishra 'mukhtalif'
8 Love
अपनी इंसानियत को बेज़ार नही कर सकता मैं हंस कर किसी पे वार नही कर सकता मुमकिन है की तुम वापस लौट आओ पर इस मोड़ पे तुम्हारा और इंतजार नही कर सकता पनप रही है एक दास्तान मेरे भीतर मगर लाचारी ये है की इकरार नही कर सकता कुछ मत मांगना इस वक्त मुझसे तुम इस वक्त मैं इनकार नहीं कर सकता अभी हवस भरी है बस नफस नफस में मेरे मैं किसी से भी प्यार नही कर सकता और कर भी लिया इश्क अगर तन्हाइयों के दबाव में तो फिर बेशुमार नही कर सकता अब तक की ज़िंदगी में इतने धोखे खाए हैं ' मुख्तलिफ ' की चाह कर भी किसी पे ऐतबार नही कर सकता ©Aditya Mishra 'mukhtalif'
22 Love
Mid night thoughts ©Aditya Mishra 'mukhtalif'
19 Love
जब हम आख़िरी बार मिले थे एक दूसरे को भुलाने के लिए संजोई यादों को मिटाने के लिए एक दूसरे को तोहमतो से बचाने के लिए पर दिल कब देखता है ज़माने की हकीकत वो कहा समझता है वक्त की नज़ाकत वो तो बस देखता है हमनाशी की सोहबत इसीलिए पहुंच जाता है सारे मयार तोड़ कर अपने हमनफज से मिलने के लिए याद है वो दिन जब इस दिल ने एक बार फिर बगावत की थी तुमसे मिलने के लिए याद है •••••• ©Aditya Mishra 'mukhtalif'
17 Love
Wednesday, 25 August | 12:30 pm
16 Bookings
खुद्दारी को ताख पे रखना पड़ता है दौलत कमाने के लिए मन को स्याह करना पड़ता है गम की रंगत छुपाने के लिए वो एक हसी का चित्र जो ज़ेहन से मिटता ही नहीं पूरी जिंदगी भी कम है उसकी सूरत भुलाने के लिए ©Aditya Mishra 'mukhtalif'
21 Love
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